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________________ १२२ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ उदीरणा के योग्य कर्मपुद्गल कौन-से हैं, कौन-से नहीं ? 44 उदीरणा-करण के योग्य कर्मों तथा उनमें पुरुषार्थ करने, न करने के विषय में भगवती सूत्र में एक रोचक किन्तु तथ्यपूर्ण प्ररूपणा की गई है। गौतम ने पूछा'भंते! जीव उदीर्ण कर्म- पुद्गलों की उदीरणा करता है? या जीव अनुदीर्ण कर्मपुद्गलों की उदीरणा करता है? अथवा जीव अनुदीर्ण, किन्तु उदीरणायोग्य कर्मपुद्गलों की उदीरणा करता है या फिर उदयानन्तर पश्चात्कृत कर्मपुद्गलों की उदीरणा करता है?" भगवान् ने कहा-“गौतम! जीव उदीर्ण की उदीरणा नहीं करता । न ही अनुदीर्ण की उदीरणा करता है । किन्तु जो अनुदीर्ण हो, साथ ही उदीरणायोग्य हो, उसकी उदीरणा करता है। लेकिन उदयानन्तर पश्चात्कृत कर्म की जीव उदीरणा नहीं करता । " इसका तात्पर्य यह है कि जो कर्म उदीर्ण हो चुके, उनकी फिर से कोई उदीरणा करने लगे तो उदीरणा का कहीं अन्त ही नहीं आएगा। इसलिए उदीर्ण की उदीरणा का निषेध किया गया है। जिन कर्म - पुद्गलों की उदीरणा सुदूर भविष्य में होने वाली है, अथवा जिनकी उदीरणा नहीं होने वाली है, ऐसे अनुदीर्ण- ( उदीरणा के अयोग्य) कर्मपुद्गलों की भी उदीरणा सम्भव नहीं है । तथैव जो कर्मपुद्गल उदय में आ चुके, उदयानन्तर पश्चात्कृत (सामर्थ्यहीन) हो चुके, उनकी भी उदीरणा नहीं होती । किन्तु जो कर्मपुद्गल वर्तमान में अनुदीर्ण हैं, मगर हैं वे उदीरणा के योग्य, उन्हीं की उदीरणा होती है। ऐसे ही कर्मपुद्गलों की उदीरणा करने में पुरुषार्थ संफल होता है । उदीरणा: पुरुषार्थवाद की प्रेरणादायिनी है इससे आगे का संवाद पढ़िये, जो पुरुषार्थवाद का प्रेरक है। गौतम ने पूछा"भंते! अनुदीर्ण, किन्तु उदीरणायोग्य कर्मपुद्गलों की जो उदीरणा होती है, वह उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुष्कार ( पौरुष) और पराक्रम द्वारा होती है, या अनुत्थान, अकर्म, अबल, अवीर्य, अपुरुष्कार और अपराक्रम द्वारा होती है ? भगवान ने कहा- " गौतम! जीव उत्थान आदि द्वारा अनुदीर्ण, किन्तु उदीरणायोग्य कर्मपुद्गलों की उदीरणा करता है, किन्तु अनुत्थान आदि के द्वारा तथारूप उदीरणा नहीं करता । १ १. (क) भगवती सूत्र श. १ / १४८ (ख) जैन दर्शन : मनन और मीमांसा (ग) भगवती सूत्र १ / १४९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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