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________________ कर्मबन्ध की विविध परिवर्तनीय अवस्थाएँ - १ ८५ कि कर्मबन्ध होने के पश्चात् उदय में आने पर ही फल देता है। उससे पहले तकयानी उदय में आने के अव्यवहित पूर्वक्षण तक वह सत्ता में पड़ा रहता है। और कर्म-बंध यदि निकाचित नहीं है, तो कर्त्ता के शुभ या अशुभ परिणामों के अनुसार उसकी स्थिति और अनुभाग में रद्दोबदल या न्यूनाधिकता हो सकती है। एक कर्म का अपनी सजातीय उत्तरप्रकृतियों में (कुछ अपवादों के सिवाय) संक्रमण हो सकता है। अतः उदय में आने से पूर्व बन्ध की अवस्था में परिवर्तन हो सकता है। जैनकर्मविज्ञान का मनोवैज्ञानिक आधार पर यह प्रतिपादन है। इसलिए पूर्वोक्त आगमवचनों का परिष्कृत अर्थ इस प्रकार करना उचित होगा- पूर्वबद्धकर्म उदय में आने से पूर्व जैसा (जिस शुभाशुभ परिणामों से) बँधा हुआ होता है, तदनुसार ही उसका शुभ या अशुभ फल प्राप्त होता है। जैनकर्मविज्ञान का यह माना हुआ सूत्र है कि परिणामों की तीव्रता - मन्दता या शुभता - अशुभता के अनुसार बन्ध होता है। और जीव के परिणामों में परिवर्तन होते कोई देर नहीं लगती। रमण महर्षि के विषय में यह प्रसिद्ध है कि जब वे पहले-पहल आत्म-साधना के लिए जिस गुफा में रह रहे थे, वहाँ सांप, विषैले कीट आदि जीवजन्तु भी रहते थे। | परन्तु रमण महर्षि का उनके प्रति कोई दुर्भाव या हिंसा का भाव नहीं था, इसलिए वे अनेकों बार उनके शरीर पर रेंगते और लिपट जाते थे, फिर भी उन्होंने उन्हें काटा नहीं, और न ही रमण महर्षि उन पर दुर्भाव लाये । १ इसी प्रकार किसी व्यक्ति ने अज्ञानता या राग-द्वेषादिवश कोई अपराध कर लिया, परन्तु बाद में उसके मन में पश्चात्ताप हुआ, जिन व्यक्तियों या जीवों के प्रति अपराध किया था, उनसे क्षमा मांगी। अन्तःकरण में पवित्र मैत्रीभावना उमड़ी। उसने जो अपराध किया था, समाज में एक बार तो उसकी प्रतिक्रिया उसके प्रति घृणा और द्वेष के रूप में हुई, किन्तु जब उसके परिणामों में अशुभ के बदले शुभभाव उत्पन्न हुए तो समाज ही नहीं, राज्य सरकार भी क्या उसे पूर्वकृत अपराध की उतनी ही सजा देती है? वर्तमान युग में आजन्म दण्डप्राप्त अपराधी की शुभभावना तथा शुभ आचरण देखकर सरकार भी उसकी सजा की अवधि कम कर देती है, अथवा उसकी सजा माफ करके उसे जेल से मुक्त कर देती है। यही बात कर्म - सरकार की है। कर्म बांधते समय जैसा भी शुभ-अशुभ, कोमल-क्रूर परिणाम था, तदनुसार बन्ध हुआ, लेकिन कर्म सत्ता में पड़ा रहा, अभी तक उदय में नहीं आया, उस दौरान उसके परिणामों में शुभ या अशुभ, तीव्र या मन्द, क्रूर या कोमल जैसा भी परिवर्तन हुआ, तदनुसार बन्ध की स्थिति और रस देखें- 'गुप्तभारत की खोज' (पाल ब्रंटन) में रमण महर्षि की जीवनगाथा For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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