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________________ = पाप और पुण्य कर्मप्रकृतियों का बन्ध = पाप कर्म की प्रकृतियाँ और उनका बन्ध . हिंसादि पापकर्मों का बन्ध सर्वमान्य एक व्यक्ति निर्दयतापूर्वक किसी की हत्या कर रहा है, दूसरा व्यक्ति किसी को झूठ बोल कर ठग रहा है, तीसरा व्यक्ति किसी के यहाँ डाका डाल रहा है या चोरी कर रहा है, चौथा व्यक्ति किसी परस्त्री के साथ बलात्कार कर रहा है और पाँचवाँ व्यक्ति तस्करी से अनाप-शनाप धन कमा रहा है और उसे जोड़-जोड़ कर ममतापूर्वक तिजोरी में रख रहा है, न तो वह किसी दीन, अनाथ, निर्धन या पीड़ित को सहायता देता है और न ही किसी सेवा कार्य में अथवा सेवा-संस्था में धन को लगाता है। इन पांचों प्रकार के व्यक्तियों के कार्य प्रत्यक्ष हैं, उजागर हैं। इन हिंसादि पांचों प्रकार के कार्यों के लिए भारत के तीनों ही प्रमुख धर्म (जैन, बौद्ध, वैदिक) या धर्मशास्त्र अथवा धर्मानुयायी यही कहेंगे ये पांचों ही पापकर्म का बन्ध कर रहे हैं। जैसा पापकर्म करेंगे, वैसा इनको फल भोगना होगा। चार कषायों से पापकर्म का बन्ध अवश्यम्भावी इसी प्रकार कोई व्यक्ति अत्यन्त क्रोध करता है, कोई अत्यन्त अहंकारी है, कोई जाति आदि के मद में छक रहा है, कोई छल-कपट, धोखाधड़ी, ठगी और अत्यन्त माया करता है, इससे भी आगे बढ़कर कोई लोभ, तृष्णा, लालसा, आसक्ति में अत्यन्त डूबा रहता है। क्या इन चारों कषायों से पापकर्म का बन्ध नहीं होगा? कषायों से पापकर्म का बन्ध होगा, इसे सभी धर्म, धर्मशास्त्र एवं धर्मानुयायी एकस्वर से स्वीकार करते हैं। जैनागमों में तो स्पष्ट बताया है कि इन चारों उत्कट कषायों से पुनः पुनः जन्म-मरण होता है। माया करने से पापकर्मबन्ध होकर तिर्यञ्चगति प्राप्त १. तिव्वकोहाए तिव्वमाणाए तिव्वलोहाए -भगवती सूत्र श. ८, उ. ९, सू. ४० । (४१७) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004245
Book TitleKarm Vignan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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