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________________ घाती और अघाती कर्म-प्रकृतियों का बन्ध ४०५ रात्रि के आगमन होते ही बहुरूपिये की नाट्यकला देखने के लिये गाँव-गाँव से अपार मानव-मेदिनी उमड़ पड़ी। गाँव के लोगों के साथ दर्जी भी अपनी पत्नी के साथ आ गया था। नाटक प्रारम्भ होते ही ज्यों ही पर्दा खुला, सभी लोग हूबहू गाँव के दर्जी और उसकी पत्नी की हूबहू नकल देखकर टकटकी लगाकर देखने लगे। इस दृश्य को देखते ही लोग हंसते-हंसते लोट-पोट हो गए। वही एक्टिंग, वही स्वर, हाथ में कैंची, गले में नापने का फीता, आँखों पर चश्मा लगाए और कान पर पैंसिल दबाये हुए दर्जी की लीला देखकर लोग ठहाका मार कर हंसने लगे। उधर दर्जी और उसकी पत्नी मन ही मन क्रोध के मारे आगबबूला हो रहे थे। दर्जी की पत्नी को अत्यधिक गुस्सा आया। वह एकदम उबल पड़ी और पति से कहा-चलो यहाँ से, हमारी यह तौहीन अब हमसे सहन नहीं होती ! लोग भी कैसे निर्लज्ज है, हंसते जा रहे हैं और हमारी ओर बार-बार ताकते जा रहे हैं। दर्जी को भी क्रोध तो बहुत आ ही रहा था, वह अपने स्थान से एकदम उठकर चलने लगा कि स्टेज पर से बहुरूपिया बोला-'अरे दर्जी भाई ! आप बीच में से उठ कर जा रहे हैं, यह अच्छा नहीं है। अभी तो खेल अधूरा है। यह तो हमारा नाटक है, आप इसे अपने पर क्यों ले रहे हैं? आप नाराज होकर मत जाइए, बैठिये, बैठिये !' यह सुनकर दर्जी के क्रोध का पारा और चढ़ गया। उठते-उठते दर्जी बड़बड़ाते हुए चलने लगा-"तू कौन होता है, मुझे रोकने वाला? हम तो अभी जा रहे हैं ! इतना ही नहीं, मैं अब इस गाँव में इन लोगों के साथ नहीं रहना चाहता; क्योंकि ये लोग भी हंसी उड़ाकर मेरा अपमान एवं तौहीन कर रहे हैं ! इसलिए मुझे यह बेकार का नाटक नहीं देखना।" दर्जी को उठकर जाते देख दर्शकों में खलबली मच गई। रंग में भंग हो गया। गाँव के मुखिया ने तथा अन्य लोगों ने बहुरूपिया से कहा-हमारे गाँव में एक ही तो दर्जी हे, वह भी रूठ कर गाँव से जाने की तैयारी कर रहा है, यह अच्छा नहीं है। जैसे भी हो तुम दर्जी साहब को मनाकर लाओ। उधर दर्जी और उसकी पत्नी झटपट घर गए और अपना सब सामान बटोर कर बैलगाड़ी में भरने लगे। गाँव के समझदार लोग पहुँचे। उसे मनाने और समझाने की बहुत कोशिश की, पर सब व्यर्थ ! बैलगाड़ी में सामान लादकर दर्जी ज्यों ही गाँव से बाहर निकला, त्यों ही बहुरूपिया बीच रास्ते में खड़ा हो गया। वह बोला-“देखी न, बंदे की करामात ! गाँव छोड़ कर जाना पड़ा न ! जाओ-जाओ, शीघ्र चले जाओ। वापस लौटकर मत आना।" ज सुनते ही दर्जी के अहंकार पर डबल चोट पड़ी। उसने आवेश में आकर कहा-"जा जा, बहुरूपिये के बच्चे ! तू कौन होता है, हमें गाँव से निकालने वाला ! हम नहीं जाते, इसी गाँव में रहेंगे।" यों कह कर उसने अपनी बैलगाड़ी वापस लौटा ली और गाँव में प्रवेश करके अपने घर पहुँच गया। __इस रूपक में मुख्यतया चार बातें हैं-पहले बहुरूपिये में अहंकार, क्रोध और बदले की भावना उमड़ी। तत्पश्चात् बहुरूपिये ने दर्जी दम्पत्ति में क्रोध और आवेश Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004245
Book TitleKarm Vignan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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