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________________ ३९८ कर्म-विज्ञान : भाग ४ : कर्मबन्ध की सार्वभौम व्याख्या (७) भोगान्तराय कर्म बांध रखा है, भले ही उसका भण्डार खाने-पीने की चीजों से भरा है, तथापि वह उनका उपभोग नहीं कर पाता। दुनिया में ऐसे लखपति-करोड़पति भी हैं, जिन्हें ऐसे रोग लगे हैं, या वे तनावग्रस्त हैं, या दुर्घटनाग्रस्त हैं, कि सिवाय एक दो चीज के कुछ भी खा-पी नहीं सकते, क्योंकि डॉक्टरों ने उन्हें मना कर रखा है। अथवा जिसने उपभोगान्तराय कर्म बांध रखा है, वे व्यक्ति भी बंगला, कोठी, कार, आदि वाहन होते हुए भी उनके भूतप्रेतादिग्रस्त होने या कार में बैठ कर बाहर निकलने पर प्राणों का खतरा होने के कारण उनका उपभोग नहीं कर सकते। आयकर, सम्पत्तिकर आदि का चक्कर होने से वे फटे-पुराने, मैले-कुचैले वस्त्र पहनते हैं, ताकि वे गरीब मालूम दें, और कोई सरकारी आधिकारी आकर छापा न मार दे, अथवा डाकू लोग अपहरण न करलें। यह सब उपभोगान्तराय कर्म की कृपा का फल है। मम्मण सेठ का उदाहरण इस विषय में प्रसिद्ध है। उसके भाग्य में सिर्फ तेल और चवला ही थे। (५) शक्ति का प्राप्त न होना-जिसने वीर्यान्तराय कर्म बांधा है, उसके उदय में आने पर शक्ति प्राप्त करने के तमाम साधन विद्यमान होने पर भी शक्ति प्राप्त नहीं कर पाता। देखा जाता है कि कई व्यक्ति अपने शरीर को पुष्ट और सशक्त बनाने के लिए नाना प्रकार की शक्तिवर्द्धक, टॉनिक दवाइयाँ एवं इंजेक्शन लेते हैं, पौष्टिक पदार्थों का सेवन भी करते हैं, फिर भी उनके शरीर में बल का संचार नहीं हो पाता, उनका मनोबल भी क्षीण हो जाता है, उनका बुद्धिबल भी मन्द हो जाता है। कुछ लोग तो शक्ति-संवर्द्धन के लिए मांसाहार, मछली और अंडों का सेवन करते हैं, प्राणिहिंसाजन्य शक्तिप्रद कई चीजें खाते-पीते हैं, इसके बावजूद भी उनका शरीर सत्त्वहीन, तेजोहीन और शक्तिहीन रहता है, केवल वातवृद्धि के कारण वह फूला हुआ दिखता है। पूर्वबद्ध वीर्यान्तरायकर्म मनुष्य की जीवनी-शक्ति को इतना क्षीण कर डालता है कि उससे उठना-बैठना भी कठिन हो जाता है।' निष्कर्ष यह है कि कोई दान देता हो; उसे रोकने वाले, अपने मातहत या सेवकों की आवश्यकताओं में कटौती करने वाले, गिरवी रखी हुई वस्तु या संस्था की रकम को हड़पने वाले, तथा कपिला की तरह पराई वस्तु का कहने पर भी दान न दे सकने वाले, केवल धन या साधनों की चौकीदारी करने वाले साधन-सम्पत्ति होने पर भी सुपात्र को दान न देने वाले लोग दानान्तरायकर्म के फलस्वरूप आगामी भव में वस्तु या धन मिलने पर भी उसका उपयोग नहीं कर पाते, पैसा होने पर भी सत्कार्य में सदुपयोग नहीं कर सकते। इसी तरह ब्लैक मार्केट, चोरी, डकैती, स्मगलिंग आदि के कारण लाभान्तराय कर्म बांधते हैं, भविष्य में उन्हें उसके फलस्वरूप लाभ प्राप्त नहीं होता। जो व्यक्ति अपनी शक्ति का उपयोग हिंसादि अशुभ कर्मों में करता है, वह जन्मान्तर में दीन-दुःखी, क्षयरोगी, दमा का रोगी, या केंसर का रोगी होकर जिंदगी पूरी करता है। १. ज्ञान का अमृत से पृ. ३६८-३६९ २. जैनदृष्टिए कर्म से पृ. १६७-१६८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004245
Book TitleKarm Vignan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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