SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 390
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४२ कर्म-विज्ञान : भाग ४ : कर्मबन्ध की सार्वभौम व्याख्या (७) फिर नजर बचाकर वहाँ से अन्यत्र विहार किया। कामपीड़ित कमलश्री वानरी आर्तध्यान से मरकर हंसली बनी। एक बार वसुभूतिमुनि तालाब के किनारे कायोत्सर्ग में खड़े थे। हंसली आ-आकर पूर्वभव के कामोन्मादवश उन पर पानी छींटने, विरह वेदना व्यक्त करने तथा वैषयिक चेष्टा करने लगी। मुनि वहाँ से तुरंत अन्यत्र विहार कर गए। हंसली आर्तध्यान से विलाप करके मर गई और व्यन्तरी हुई। उसने अपने ज्ञान से वसुभूति मुनि और अपना पूर्व सम्बन्ध जाना और क्रोध में आगबबूला होकर मन ही मन निश्चय किया-“वसुभूति ने मुझे ठुकरा-ठुकराकर दुःखी किया, अब मैं मजा चखाऊँगी।" यों निश्चय करके मुनिवर जहाँ ध्यान में खड़े थे, वहाँ आई, भयंकर उपसर्ग किये, अनुकूल भी और प्रतिकूल भी। परन्तु मुनि मेरु की तरह समभाव एवं क्षमाभाव में अडोल रहे। शीघ्र ही क्षपक-श्रेणी पर आरूढ़ होकर चार घातिकर्मों का क्षय किया। उन्हें केवलज्ञान-केवलदर्शन प्रगट हो गए। केवलीमुनि ने उपस्थित जनता को माया-शल्य की भयंकरता समझाई। अगर कमलश्री से मोहकर्मोदयवश दोष लग गया, परन्तु वह मायाशल्य न रखकर आलोचना-प्रायश्चित्त करके शुद्ध हो जाती तो, तिर्यञ्चभवों का इतना भ्रमण टल जाता। किन्तु कमलश्री ने मन में कामवासना आदि का शल्य रखकर उस कृत पापकृत्य को छिपाकर प्रायश्चित्त किया। उक्त मायाशल्य के कारण तिर्यञ्चायुकर्म बंध गया। गूढमाया के कारण तिर्यञ्चायु का बन्ध इसी प्रकार गूढ़माया मन में रखने से, हृदय में किसी बात को छिपा कर रखने से, अथवा किसी के साथ धूर्तता या ठगी करने से, 'मुख में राम बगल में छुरी' वाली कहावत चरितार्थ करने से भी तिर्यञ्चायुकर्म का बन्ध होता है। रुद्रदेव की पत्नी अग्निशिखा थी। उसके तीन पुत्र थे-डूंगर, कुडंग और सागर उनकी तीन पत्नियों के नाम क्रमशः शीला, निकृति और संचया थे। घर में प्रतिदिन कभी सास-बहू में, कभी देवरानी-जिठानी में, कभी पिता-पुत्र में तो कभी पति-पत्नी में ठन जाया करती थी। कोई दिन ऐसा नहीं जाता था, जिस दिन घर में महाभारत न होता हो। पूरा घर क्लेशमय और नरकमय बन जाता था। इस अशान्ति की आग में घर के सभी लोग झुलस रहे थे।२ एक दिन रुद्रदेव ने सोचा-मेरे मरने के बाद अग्निशिखा का क्या होगा ? इसकी कोई सेवा नहीं करेगा और धन के अभाव में तो इसे कोई पूछेगा भी नहीं। अतः मुझे इसे चुपके से कुछ धन दे देना चाहिये, ताकि इसका जीवन सुखपूर्वक बीते। ___एक दिन घर के सभी सदस्य बाहर गये थे, केवल रुद्रदेव और अग्निशिखा दो ही व्यक्ति घर में थे। रुद्रदेव ने घर का दरवाजा बंद किया और अग्निशिखा को १. रे कर्म तेरी गति न्यारी से भावांशग्रहण, पृ. १४४ २. वही, भावांशग्रहण, पृ. १४१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004245
Book TitleKarm Vignan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy