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________________ == उत्तर-प्रकृतिबन्ध := प्रकार, स्वभाव और कारण-३ मोहनीय कर्म की उत्तर-प्रकृतियाँ : स्वरूप, बन्धकारण और फलभोग कर्म की आठ मूल प्रकृतियों में मोहनीय कर्म सबसे प्रबल है। जीव के संसार-परिभ्रमण का मूल कारण मोहनीय कर्म ही है। यह समग्र संसार मोह की ही लीला है। .. . मोहकर्म के आगे बड़े-बड़े पराजित हो गए बड़े-बड़े महान् पुरुष मोहकर्म के आगे पराजित हो गए। साधारण मनुष्य की तो बात ही क्या, बड़े-बड़े तपस्वी महापुरुष भी मोहकर्म की भीष्म शक्ति के आगे नेतमस्तक हो जाते हैं। चार ज्ञान के धनी, सर्वाक्षरसन्निपाती, अनेक-लब्धि-निधान तपोधन श्री इन्द्रभूति गौतम गणधर भी (प्रशस्त) मोह के कारण भगवान् महावीर की अवस्थिति में केवलज्ञान की प्राप्ति नहीं कर सके। अपार समृद्धि के त्यागी, तपोनिष्ठ भी शालिभद्रमुनि को जरा-से मोह के कारण एक जन्म और लेना पड़ेगा। भागवतपुराण के अनुसार गृहत्यागी, विपिनवासी निःस्पृह जड़भरत को एक मृगशिशु के मोह के कारण अपनी साधना से विचलित होने के कारण मृगयोनि में जन्म लेना पड़ा। रामायण के अनुसार दशरथ का अपनी पत्नी कैकेयी में मोह के कारण ही श्रीराम को चौदह वर्ष का वनवास स्वीकारना पड़ा। ___ मोहनीय कर्म सब कर्मों से प्रबल क्यों है ? वेदनीय कर्म अपने-आप में किसी को सुखी या दुःखी नहीं करता। सांसारिक लोगों द्वारा माने गए सुख एवं दुःख के निमित्त एवं संयोग वेदनीय कर्म के द्वारा प्रस्तुत हो जाते हैं, किन्तु उन पर रागद्वेष करके एक को अच्छा, एक को बुरा, एक १. ज्ञान का अमृत से भावांशग्रहण, पृ. २७९, २८० (२९३) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004245
Book TitleKarm Vignan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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