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________________ उत्तर-प्रकृतिबन्ध : प्रकार, स्वरूप और कारण-१ २६३ मनःपर्यायज्ञान, मनःपर्यायज्ञानावरण : स्वरूप और कार्य इन्द्रियों और मन की सहायता के बिना द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से मर्यादापूर्वक जो ज्ञान संज्ञी (समनस्क) जीवों के मनोगत पर्यायों (भावों) को जानता है, वह मनःपर्यायज्ञान कहलाता है। संज्ञी (मन वाला) जीव जब मन में किसी वस्तु का चिन्तन-मनन करता है, तब मन चिन्तनीय वस्तु के भेद के अनुसार भिन्न-भिन्न आकृतियाँ धारण करता है। ये आकृतियां ही मन के पर्याय हैं। मन की इन पर्यायों (आकृतियों) को आत्मा से साक्षात् (Direct) जानने वाला ज्ञान मनःपर्यायज्ञान कहलाता है। अथवा दूसरे के मनोगत अर्थ (मनोभाव) को मन कहते हैं, उसके मन के सम्बन्ध से उस पदार्थ के पर्ययण जानने को या मनःपर्याय-ज्ञानावरण के क्षयोपशम आदि रूप सामग्री के निमित्त से परकीय मनोगत अर्थ के जानने को मनःपर्याय ज्ञान कहते हैं। मनःपर्याय ज्ञान का आवरण-आच्छादन करने वाला कर्म मनःपर्याय ज्ञानावरणीय कर्म कहलाता है। इस ज्ञान. के बल से मनन की जाने वाली वस्तुएं नहीं जानी जाती, किन्तु मन की आकृतियाँ (पर्यायें) जानी जाती हैं। मनन की जाने वाली वस्तुओं का बोध तो बाद में अनुमान के द्वारा होता है। जैसे-मानसशास्त्रवेत्ता व्यक्ति किसी का चेहरा या हाव-भाव देखकर उसके आधार पर उस व्यक्ति के मनोगत भावों का ज्ञान अनुमान से कर लेता है, वैसे ही मनःपर्यायज्ञानी मनःपर्यायज्ञान से मन की आकृतियों को प्रत्यक्ष करके फिर अभ्यासवश ऐसा अनुमान कर लेता है कि इस व्यक्ति ने अमुक वस्तु का चिन्तन किया है, क्योंकि इसका मन इस वस्तु के चिन्तन से होने वाली आकृति से युक्त है। . मानसशास्त्रियों का कहना है-हमारे मानस में जो भी संकल्प-विकल्प चलता है, या जो भी विचारों की लहरें उठती हैं, मानस-पटल पर उनके चित्र उतर आते हैं, मनःपर्यायज्ञानी इन चित्रों को देखता है, जान लेता है, चित्रों के आधार पर जिन विचारों को लेकर मन में वे चित्र बने हैं, उन विचारों का भी अमुमान लगा लेता है। फलतः वह मन की सोची हुई बात तत्काल बता देता है। __मनःपर्यायज्ञान और अवधिज्ञान में क्या अन्तर है? मनःपर्यायज्ञान और अवधिज्ञान में क्या अन्तर है? यह भी जान लेना आवश्यक है। अवधिज्ञान में घड़ा, पैंसिल, हाथी, ऐरोप्लेन आदि रूपी द्रव्य दिखाई देते हैं परन्तु घड़ों के लाने वाले, या पैंसिल से लिखने वाले के मन में क्या चिन्तन चल रहा है? या ऐरोप्लेन चलाने वाला मन में उसे कहाँ ले जाने की योजना बना रहा है? अथवा हाथी क्या करना चाहता है? इसका पता अवधिज्ञान-युक्त जीव को नहीं चलता। अवधिज्ञान १. (क) तत्त्वार्यसूत्र विवेचन (प. सुखलालजी) से पृ. २९ ... (ख) ज्ञान का अमृत से पृ. २१४ २.. ज्ञान का अमृत, पृ. २१४-२१५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004245
Book TitleKarm Vignan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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