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________________ =प्रदेशबन्ध : स्वरूप, कार्य और कारण= सूत के धागों की संख्या की तरतमता के अनुसार वस्त्र निर्माण यह तो सबकी अनुभूत बात है कि चरखे पर सूत कातते समय धागा जितना मोटा होगा, उतना ही अधिक उसका कपड़ा बुना जाएगा, इसके विपरीत सूत का धागा, जितना मध्यम या बारीक होगा, कपड़ा उतना ही कम बुना जाएगा। मोटे सूत से बने हुए धागे से बना हुआ कपड़ा उतनी ही अधिक जगह रोकेगा, जबकि बारीक सूत से बने हुए धागे से बना हुआ कपड़ा उतनी ही कम जगह रोकेगा। फिर सूत के नम्बर भी धागे के अनुसार खादी-संस्थानों में तय किये जाते हैं। कता हुआ अमुक सूत ३० नम्बर का होता है, कोई ४० नम्बर का होता है, तो कोई ६० या ८० नम्बर का होता है। सूत के धागों के नम्बरों में सूत के मोटे बारीक के अनुसार भी अन्तर होता है। वैसे ही प्रदेश-बन्ध में कर्म-परमाणु-स्कन्धों के परिमाण के पीछे मन-वचनकाय के योगों की अधिकता-न्यूनता के अनुसार उनका अलग-अलग जत्थों (ग्रुपों) में विभक्त होकर बन्ध होता है। कर्मवर्गणा के आकर्षण के समय सर्वप्रथम प्रदेशबन्ध होता है . जिस समय कर्मबन्ध होता है, उसमें सर्वप्रथम जीव द्वारा कर्मवर्गणा आकर्षित की जाती है; वह प्रकृति, स्थिति और रस की अपेक्षा के बिना ही ग्रहण की जाती है, क्योंकि प्रदेशबन्ध में सिर्फ कर्मवर्गणाओं का ग्रहण किया जाता है। कर्मवर्गणा के आकर्षण के समय उक्त कर्मदलिक कितने परिमाण का है ?कितनी संख्या में है ? इसका निर्णय जहाँ होता है, वही प्रदेशबन्ध कहलाता है। जैसे-लड्डू बांधते समय कोई लड्डू १00 ग्राम का होता है, कोई ५० ग्राम का, कोई १५० ग्राम का और कोई २०० ग्राम का भी होता है, वैसे ही कर्म बांधते समय ग्रहण किये हुए कोई कर्म-परमाणु-स्कन्ध (कर्म-दलिक) अल्प कर्म-दल वाला होता है, कोई अधिक कर्मदल वाला होता है तो किसी गृहीत कर्म में अत्यधिक कर्मदल होते हैं। इस प्रकार १८५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004245
Book TitleKarm Vignan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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