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________________ = कर्मबन्ध के मुख्य कारण : एक अनुचिन्तन = बन्धरूप रोग के कारणों को जानना अनिवार्य : क्यों और कैसे ? यह सर्वानुभूत तथ्य है कि कोई व्यक्ति केवल अपने रोग को ही जान ले, रोग के कारणों को न जाने, तो उस व्यक्ति का रोग दिनोंदिन बढ़ता जाएगा, इसी प्रकार कोई व्यक्ति अपने दुःख का ही रोना रोता रहे, वह दुःख किन कारणों से उत्पन्न होता है ? इस बात को न जाने, न ही जानने का प्रयत्न करे, वह भी दुःख को दूर करने के बदले, उसे बढ़ाता ही रहेगा। किसी चिकित्सक के पास कोई रोगी आए, उस समय यदि वह चिकित्सक रोगी के कहने मात्र से ही रोग का निश्चय कर ले और उसकी चिकित्सा प्रारम्भ कर दे तो वह उस रोगी के रोग को मिटाने में सफल हो सके, इसमें सन्देह है। इसलिए कुशल चिकित्सक रोग का निदान करने से पहले उस रोग के कारणों का पता लगाता है। तभी वह उस रोग की सफल चिकित्सा करके रोगी को स्वस्थ कर सकता है। कई बार अनाड़ी वैद्य शारीरिक रोग के मानसिक कारणों का पता लगाये बिना ही दवाइयाँ बदल-बदल कर देता रहता है, परन्तु रोग मिटने के बदले दिनोंदिन बढ़ता ही जाता है। इसलिए कुशल चिकित्सक रोग के बाह्य और आन्तरिक कारणों का पहले पता लगाता है, तभी वह जान पाता है, कि यह रोग क्या है ? इस रोग की सही चिकित्सा क्या है ? आरोग्य-प्राप्ति का हेतु क्या है ? और आरोग्य-प्राप्ति की स्थिति क्या और कैसी होती है ? इसी प्रकार अध्यात्म-साधना-कुशल आत्मार्थी साधक बन्ध को (इसे किस कर्म छ बन्ध है ? इसे) जानने के बाद शीघ्र ही यह पता लगाता है कि इस कर्मबन्ध के क्या और कौन-कौन से कारण हैं ? इतना जानने के पश्चात् ही वह कर्म-रोग की भली-भाँति चिकित्सा कर सकता है। अर्थात्-कर्मबन्ध रूप रोग को जानने के पश्चात् ही वह उक्त बन्धन से मुक्त होने के कौन-कौन-से यथार्थ उपाय हैं ? और बन्धन-मुक्ति, का यथार्थ स्वरूप क्या है ? इसे सम्यकप से जानकर कर्मों से आत्मा को मुक्त का १ तुलना करें-योगदर्शन में दुःख के सम्बन्ध में चतुर्दूह बताया गया है-“हेयः, हेयहेतुः, हान, हानोपायः। १२० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004245
Book TitleKarm Vignan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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