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कर्मबन्ध का सर्वाधिक प्रबल कारण : मिथ्यात्व
प्रकाश और अन्धकार
अनन्तकाल से कालचक्र गतिमान् है। दिन के बाद रात और रात के बाद दिन, इस प्रकार काल का चक्र अनवरत घूम रहा है। दिन को सूर्य का प्रकाश रहता है और रात्रि को अन्धकार । जहाँ प्रकाश हो, वहाँ अन्धकार टिक नहीं सकता। इसी प्रकार जहाँ अन्धकार हो, वहाँ आँखें खोलने पर भी प्रकाश दृष्टिगोचर नहीं होता ।
अन्धकार को प्रकाश मानने वाले जीव
इस समग्र विश्व में द्रो प्रकार के जीव हैं। अधिकांश जीव तो प्रकाश को ही जीवन मानते हैं; जबकि उल्लू, चमगादड़ आदि दूसरे प्रकार के जीव अन्धकार को ही प्रकाश मान कर जीते हैं। इन दोनों प्रकार के जीवों की प्रवृत्ति और प्रकृति में जमीन-आसमान का अन्तर है। उल्लू आदि प्राणी रात्रि को ही दिन मान कर जीवन-यापन करते हैं, तथा दिन को रात्रि मान कर आँखें बंद करके निद्राधीन हो जाते हैं। यह देखा गया है कि उल्लू आदि जीव रात्रि को ही दिन का प्रकाश मान कर जीवन-निर्वाह के लिये दौड़-धूप करते हैं। वे सूर्य को अन्धकार का पिण्ड और शत्रु समझते हैं। वे सोचते हैं कि "भक्षक प्राणी तो एक ही बार में जीवन का अन्त कर देता है, जबकि सूर्य तो प्रतिदिन लगभग १२-१३ घंटे तक अन्धेरा कर देता है, जिससे हमें उतनी देर (दिन के रहने) तक अंधकारमय काल कोठरी में बंद होकर, आँखें मूंद कर भूखे-प्यासे सो जाना पड़ता है। हम सूर्य के रहते कुछ भी प्रवृत्ति नहीं कर सकते। कितना दुःखपूर्ण जीवन व्यतीत करना पड़ता है। हमारी आधी जिंदगी का सुख तो सूर्य छीन लेता है। यदि रात्रि के अन्धकारमय महाप्रकाश पुंज की हम पर कृपा न होती तो संसार में हमारा अस्तित्व ही नहीं रहता । सदा के लिए हम मर मिटते।” इस प्रकार अंधेरे को उजाला मान कर जीने वाले निशाचारी उल्लू आदि प्राणियों के लिए प्रकाशपुंज सूर्य अभिशाप - समान है और अन्धकार के पिण्ड-समान रात्रि उनके लिए वरदान रूप है। सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक का समय उनको
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