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इस प्रकाशन में दानवीर डा. चम्पालाल जी देसरड़ा, औरंगाबाद का अपूर्व योगदान मिला है जो उनकी साहित्यिक अभिरुचि तथा उपाध्याय श्री और उपाचार्य श्री के प्रति अपार आस्था का द्योतक है। ऐसे तेजस्वी धर्मनिष्ठ युवक सुश्रावक पर हमें सात्विक गर्व है। हम उनके आभारी हैं। साथ ही साहित्यसेवी श्रीमान् श्रीचन्दजी सुराना "सरस" ने बड़ी तत्परता के साथ सुन्दर मुद्रण व साज-सज्जा युक्त प्रकाशन कर समय पर प्रस्तुत किया, हम उन्हें हार्दिक धन्यवाद देते हैं।
आशा है, पाठक इस ग्रन्थ के स्वाध्याय से अधिकाधिक लाभान्वित होंगे।
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चुनीलाल धर्मावंत कोषाध्यक्ष - श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थालय
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