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________________ PARANORAMAIDAMANDAMANAINIdina न अध्यात्मसंवर की सिद्धि : आत्मशक्ति सुरक्षा और आत्मयुद्ध से १०२९ १. पारिवारिक दवाव (दमन) भी बहुत-सी कारबुराई से बचाने में सहायक होता है। एक धनादय पिता के एक ही पुत्र था। वह विवाहित था। उसमें तीन दुर्व्यसन थे-शराब, जूआ और वेश्यागमन। मां उसे कई बार कह चुकी थी मंगर वह उसकी एक भी नहीं मानता था। पिता के प्रति उसे बड़ी श्रद्धा थी। पर पिता की व्यसन त्याग की बात उसें नहीं सुहाती थी। पिता अधिक कुछ न कहकर सब कुछ सहन करता रहा। एक बार पिता मरणशय्या पर पड़ा जिंदगी की अन्तिम घड़ियाँ गिन रहा था। . पिता ने पुत्र को अपने पास बुलाकर कहा-"क्ट अब हम तो जा रहे हैं। मैं कुछ कहूँ तो तुम उसे मानीगे?" ४.. पुत्र ने तपाक से कहा-"पिताजी! अगर आप शराब पीने, जुआ खेलने और वेश्यागमन को छोड़ने को कहेंगे तो मैं अपना वचन नहीं निभा सकेगा। इन तीनों के अलावा जो भी आप कहेंगे, मैं जी-जान से उस वचन का पालन करूंगा।" पिता ने कहा-"नहीं, बेट! मुझे इन तीनों को छोड़ने का वचन तुमसे नहीं लेना है। तुम शराब पीते ही, पिया करो, मगर सुबह ८ बजे नहीं, दोपहर को १२ बजे पीओ। तुम वेश्या के यहाँ जाते हो तो, जाओ, मगर रात के ८ बजे नहीं, किन्तु रात के तीसरे पहर में यानी ३ या ४ बजे के बीच में जाया करो।" फिर पिता ने पूछा-“तुम कितने रुपये से जूआ खेलते हो?" , says पुत्र बोला-“यही कोई पच्चीस-पचास रुपये से।" TAMARHTE HAMS इस पर पिता ने कहा- तम चाहे जितने में जला खेलो। आइतो थैली तुम्हारे हाथ में रहेगी। पर एक शर्त है कि कल से ही नही में जप का खाता खोल दो। जुए में जितने रुपये हारो, जूए के नाम लिख दो, और जितने रुपये जीतो, उतने जूए के खाते में जमा कर दो। बोलो, ये तीनों बातें मंजूर .. पुत्र खिलखिलाकर हंस पड़ा और बोला-आपकी तीनों बातें मंजूर है, पिताजी! मैं आपको वचन देता है कि तीनों बातों का पालन करूँगा। " कुछ ही दिनों बाद पिता चल बसे, पिता कवियोग में श्रद्धालु बेटे ने कई दिनों तक शोक मनाया शोक के दिनों में न तो उसने शराब को हाथ लमाया, न जुआ खेला औरन वेश्या के यहाँ गया। मियाद बीतने के बाद-पुत्र अपने पिता को दिये गए क्वनानुसार दोपहर को १२ बजे शराबखाने की और चलाविहाँ पहुँचकर देखा कि कितने ही शराबी नशे में धुत्त होकर रास्ते में पड़े हैं, कुत्ते उनका मुंह संधकर पेशाब कर रहे हैं। कई ' शः श्रेयों को लड़खड़ाते-हकलाते तुतलाने और बड़बड़ाते देखा। शराब पीने की यह दुर्दशा देख वह धनिक पुत्र उलटे पैसे लौट आया। फिर कभी शराबखाने की ओर मुंह नहीं किया। : : Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004244
Book TitleKarm Vignan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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