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________________ प्राण- संवर का स्वरूप और उसकी साधना ९०१ सामान्य प्राण प्राणी के सारे शरीर में विद्यमान और क्रियाशील रहता है। सामान्य . प्राणवैसे तो एक ही है, जो समग्र देह में क्रियाशील है, गतिशील है, स्पन्दन करता है, हलचल करता है। वही प्राणी के जीवित रहने का आधार है, वही प्राणी में जीवन का संचार संचालन और सिंचन करता है। उसी प्राण के बल पर हम और आप जी रहे हैं, हल चल कर रहे हैं, हाथ-पैर आदि हिला रहे हैं। वह सामान्य प्राण शरीर में सर्वत्र अबाध गति से संचरण करता रहता है।" सामान्य प्राण एक : विविध क्रियाशीलता के कारण अनेक सामान्य प्राणतत्त्व वैसे तो एक है, परन्तु प्राणी के शरीर में उसकी क्रियाशीलता के आधार पर वह कई भागों में विभक्त किया गया है। शरीर एक होते हुए भी शरीर के प्रमुख अवयवों की रचना नामकर्म विशेष के कारण होती है, उनके गठन तथा ऊँचाई - लम्बाई-चौड़ाई की भिन्नता के कारण उनके आकार-प्रकार में भिन्नता पाई जाती है। इसी आधार पर उनका नाम भी भिन्न भिन्न रखा गया है। प्राणियों के शरीर में प्राण शक्ति को जो विशिष्ट उत्तरदायित्व निभाने पड़ते हैं, उन्हीं के आधार पर प्राण तत्त्व एक होते हुए भी क्रियाशीलता के आधार पर इन प्राणों को पांच भागों में विभक्त किया गया है। उन्हीं के आधार पर उनके नामकरण भी पृथक् पृथक् हैं, गुणधर्म भी पृथक् पृथक् हैं। यद्यपि इस पृथकत्व के मूल में एकता विद्यमान है। जैसे- बिजली एक है, परन्तु उसके प्रयोग विभिन्न यंत्रों में विभिन्न प्रकार के होते हैं। हीटर, कूलर, पंखा, रोशनी, पिसाई, यंत्रसंचालन आदि प्रयोग करते समय एक ही बिजली की शक्ति और प्रकृति भिन्न-भिन्न हो जाती है। उपयोग और प्रयोजन को देखते हुए भिन्नता का अनुभव भी किया. जाता है, फिर भी विज्ञ लोग जानते हैं कि यह सब एक ही विद्युत्-शक्ति के बहुमुखी क्रिया कलाप है। . प्राणशक्ति के सम्बन्ध में भी यही बात कही जा सकती है। प्राण तत्त्व एक होते हुए भी मनीषियों ने उसकी विभिन्न प्रकार से व्याख्या की है। शरीर क्षेत्र में इन प्राणों के क्या-क्या कार्य हैं ? इसका निरूपण योग साधना विशारदों के द्वारा भी तथा आयुर्वेदशास्त्र में भी किया गया है। शरीर के विभिन्न केन्द्रों (भागों) में पांच प्राणों के साथ • ही अपने-अपने केन्द्र पर अधिकार रखने और उत्तरदायित्व संभालने वाले ५ उपप्राणों का भी निर्देश किया गया है। पांच प्राण हैं - ( १ ) प्राण, (२) अपान, (३) समान, (४) उदान और (५) व्यान । पांच उपप्राण ये हैं-(१) देवदत्त, (२) वृकल, (३) कूर्म, (४) नाग और (५) धनंजय १. वही से भावांश ग्रहण पृ: ५७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004244
Book TitleKarm Vignan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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