________________
मनः संवर के विविध रूप, स्वरूप और परमार्थ ८३३
बातें करने लगे। सवारों ने हर प्रकार से उन्हें रोकने की कोशिश की, पर वे इसमें सफल न हो सके। वे भयवश घोड़ों पर जोर से चाबुक फटकारने लगे। पर सब व्यर्थ!
तीनों ने समझा कि आज हमारा काल निकट आ गया है। उनमें से एक सवार को सहसा न जाने क्या सूझा कि उसने कमर से कटार निकाली और घोड़े की टांग काट दी। घोड़ा धड़ाम से धरती पर गिर पड़ा। सवार उतर गया और मन में खुश हुआ कि प्राण बच गए। किन्तु जब उसने देखा कि वह घोर जंगल में है। रास्ता भी नहीं दिखाई देता है। अतः वह पश्चात्ताप करने लगा कि हाय ! घोड़े को मार गिराने से मेरी जान तो बच गई, किन्तु मेरी गति भी तो रुक गई। अब मैं इस घोड़े से कुछ भी सहायता नहीं पा सकता, न अपने स्थान पर ही पहुँच सकता हूँ।
दूसरे सवार ने देखा कि घोड़ा इतने वेग से भाग रहा है, मैं गिर जाऊँगा । अतः उसने घोड़े की पीठ पर से छलांग लगा दी। घोड़ा आगे भाग गया। वह सवार वहीं गिर पड़ा। उसकी टांग टूट गई। पहले तो वह भी घोड़े से मुक्ति पाकर कुछ प्रसन्न हुआ, किन्तु जब देखा कि जांघ में काफी चोट आ जाने से वह चल-फिर नहीं सकता, तो वह भी शोकाकुल हो गया।
तीसरा सवार अभी घोड़े पर ही था। उसने अपने साथियों की दुर्दशा को भांप लिया था। उसने धैर्यपूर्वक घोड़े की लगाम पकड़े रखी । घोड़े को थोड़ा-सा पुचकारा । घोड़े की गति भी कुछ धीमी पड़ी। पर वह सीधा मार्ग छोड़कर बीहड़ जंगल की ओर चल पड़ा। सवार ने एड़ी लगाकर लगाम खींची और उसे ठीक मार्ग पर ले आया। फिर थोड़ा पुचकारा। उसके बाद जब-जब घोड़ा भटकने की चेष्टा करता, सवार कभी उसे पुचकारता, कभी चाबुक से डराकर सही मार्ग पर ले आता। अन्त में, इस प्रकार करते रहने से घोड़ा उसके वश में हो गया और वह उसके संकेतानुसार चलने लगा।' फलतः घोड़ा और घुड़सवार दोनों क्षतिग्रस्त नहीं हुए और सवार भी अपने निर्धारित स्थान पर पहुँच गया।
संसार में भी तीन प्रकार के व्यक्ति हैं। यों तो मनरूपी अश्व सभी मानवों को मिला हुआ है। परन्तु कुछ व्यक्ति पहले किस्म के अश्वारोही के सदृश होते हैं। वे मन को मारनें या वश में करने का तात्पर्य न समझकर मन रूपी घोड़े को दबाते, सताते और मनरूपी घोड़े की टांग काट देते हैं, अर्थात्-उसे शुद्ध या शुभ चिन्तन-मनन में न लगाकर बिलकुल निष्क्रिय, निश्चेष्ट बनाने का प्रयत्न करते हैं। वे आँख, कान आदि इन्द्रियों को बंद करके मन को बिलकुल जकड़ कर रखने का उपक्रम करते हैं। फलतः मन के साथ ज्यादती करके वे मन की उत्कृष्ट चिन्तनशक्ति को कुण्ठित, प्रतिहत और दमित कर देते हैं।
१. आम्रमंजरी से
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org