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________________ ८१0 कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मों का आस्रव और संवर (६) सिद्धान्त के अनुसार न कुछ भार वाले एक परमाणु में ही प्रकाश की गति x प्रकाश की गति अर्थात् १८६000x१८६000 कैलोरी शक्ति की उत्पत्ति हो सकती है, जो मानवमन की ही उपज है। मन की शक्ति के द्वारा भौतिक वैज्ञानिकों ने यह सिद्धान्त निर्धारित किया है कि १४ लाख टन कोयला जलाने से जितनी शक्ति मिलती है, उतनी ही शक्ति की मात्रा एक पौण्ड पदार्थ की शक्ति की होती है। यदि इस शक्ति को पूर्णतया शक्ति में बदलना सम्भव होता तो एक पौण्ड कोयले में जितना द्रव्य होता है, यदि उसे शक्ति में परिवर्तित कर दिया जाए तो पूरे अमेरिका के लिए एक महीने की बिजली तैयार हो सकती है। .. मन की प्रचण्ड विद्युत् शक्ति का चमत्कार ___डॉ. वैनेटर्न मन को ‘ए ग्रेट इलैक्ट्रिकल फोर्स' (एक महान् विद्युत् शक्ति) कहते हैं। वस्तुतः मन शरीर के द्रव्य की विद्युत् शक्ति है। मन की एकाग्रता जितनी बढ़ेगी, शक्ति उतनी ही तीव्र होगी। इसीलिए वेदों में मन को 'ज्योतिषां ज्योति' कहा गया है। इसी तरह कहा गया है-चन्द्रमा मन से जन्मा है (चन्द्रमा मनसो जातः)। वैज्ञानिकों की गणना है कि मनुष्य के पास शरीर की विद्युत् शक्ति मन के रूप में पहले से विद्यमान है। मन शरीरद्रव्य की विद्युत शक्ति ही है। यदि पूरे शरीर को इस (विद्युत्) शक्ति में बदलना सम्भव हो जाए तो १२० पौण्ड भार वाले शरीर की विद्युत्शक्ति (मानसिक ऊर्जा शक्ति) इतनी अधिक हो सकती है कि वह सारे अमेरिका को अथवा पूरे भारत को लगातार १0 वर्ष तक विद्युत् दे सकती है। मन की इस प्रचण्ड क्षमता (ऊर्जा शक्ति) से भारतीय योगी, एवं आध्यात्मिक ऋषि-मुनि शून्य आकाश में स्फोट कर देते थे। __ जैनागमों में पुलाक लब्धि का जो वर्णन आता है, वह मन की ही प्रचण्ड ऊर्जा शक्ति है, जिसके बल पर व्यक्ति चक्रवर्ती की समूची सेना तक को चूर-चूर कर सकता है। मन से सामान्य श्राप अथवा वरदान देने की बातें भी मन की उर्जा शक्ति के परिणाम हैं। प्राचीन काल के योगी एवं ऋषि-महर्षि किसी को कुछ उपदेश दिये बिना मात्र संकल्प बल से ही विश्व की मानवीय समस्याओं का समाधान तथा निर्देशन करते थे। मैस्मैरिज्म या हिप्नोटिज्म के प्रयोग भी मन की शक्ति के प्रयोग हैं। हजारों कोस दर बैठे हुए व्यक्ति तक मनःसंकल्प के द्वारा अपनी बात पहुँचा देने की विचार सम्प्रेषण विधि भी मानसिक शक्ति का प्रयोग है। मनोबल से हिमालय जैसे पर्वत को, उफनती हुई नदी को भी अपने अनुकूल बनाया जा सकता है। मनोबल से प्रसिद्ध प्रभुभक्त मीरा ने राणा के द्वारा दिये हुए विष को भी अमृतमय बना दिया था। मनोबल से संसार में हजारों आश्चर्यजनक कार्य होते देखे गए हैं। १. अखण्ड ज्योति, जनवरी १९७८ से साभार उद्धृत पृ. १३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004244
Book TitleKarm Vignan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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