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कर्मों का आम्रव : स्वरूप और भेद ५४५ इसका एक समाधान यह है कि किसी ऐसे व्यक्ति को, जिससे आप मिलना नहीं चाहते हैं, या जो आपका विरोधी है, आपका अहित ही करता है, उसकी गतिविधि भलीभाँति जान ली जाती है, या वह किस-किस कारण से, किस प्रक्रिया से आपके यहाँ प्रवेश करता है ? इसे भलीभाँति समझ लिया जाता है। उसके पश्चात् यह भी देखा जाता है कि उसके बिना हमारा काम ही नहीं चलता है तो उसे इस प्रकार से अनुकूल बनाया जाता है कि आने पर भी हमारा अहित या नुकसान न करे।
ठीक यही बात चतुर्दिग्व्यापी कर्मपुद्गलों के आगमन की गतिविधि और उसके प्रवेश की प्रक्रिया को समझकर कितनी मात्रा में किन कर्मपुद्गलों के आगमन को स्वीकृत या अस्वीकृत करना है ? इसे भलीभाँति समझ लिया जाए। उसके पश्चात् उससे स्व-परहितमूलक तालमेल बिठाया जाए। कर्मों का आनव प्रभावित नहीं कर सकेगा : कैसे और किस उपाय से?
ब्राडकास्ट की हुई ध्वनि तरंगें आकाश में सर्वत्र घूमती रहती हैं, पर प्रकट वहीं होती हैं, जहाँ रेडियो यंत्र का स्विच खुला हुआ हो। ठीक इसी प्रकार ब्रह्माण्ड (चतुर्दश रज्जू प्रमाण लोक) में कर्मवर्गणा के अच्छे-बुरे पुद्गल परमाणु काजल की कुप्पी की तरह ठसाठस भरे हैं, फिर भी अपने आत्मप्रदेशों में उन्हीं कर्मपुद्गल परमाणुओं का अवतरण होता है, जिन्हें जीव राग-द्वेष या कषायादिवश अपनाते हैं। यदि व्यक्ति उन्हें उपेक्षित कर देता है, या कोई भी मानसिक, वाचिक, कायिक क्रिया करते समय रागद्वेषादि से दूर रहकर यानी प्रियता-अप्रियता का भाव न लाकर; केवल ज्ञाता द्रष्टा रहता है, तटस्थ या सम रहता है, तो वे उपेक्षित कर्म पुद्गल स्वतः ही हट जाएँगे। स्निग्ध दीवार की तरह रागद्वेष-स्निग्ध आत्मा पर ही कर्मरज चिपकती है ___ जैसे एक दीवार पर किसी ने तेल या कोई स्निग्ध पदार्थ लगा दिया, अगर चारों ओर धूल उड़ती है, तो वह उस दीवार पर शीघ्र आकर चिपक जाएगी, किन्तु एक दूसरी दीवार है, जिस पर कोई भी स्निग्ध पदार्थ नहीं लगा है, पॉलिश की हुई है या चूना घोंटकर उस पर लगाया हुआ है, तो उस पर उड़ती हुई धूल टकराएगी जरूर, परन्तु दूसरे ही क्षण नीचे झड़ जाएगी।
इसी प्रकार अगर व्यक्ति की आत्मा की दीवार पर राग-द्वेष या कषाय की स्निग्धता होगी तो उससे मन-वचन-काया के योग चंचल-सक्रिय हो उठेंगे, और आकाश मण्डल में घूमती हुई कर्मरज तुरन्त आकर चिपक जाएगी। किन्तु यदि व्यक्ति की आत्मा की दीवार रागादि से रहित केवल ज्ञाता-द्रष्टारूप में निर्मल होगी तो उस पर कर्मरज नहीं चिपकेगी। ऐसी स्थिति में अगर मन-वचन-काया से कोई प्रवृत्ति भी हुई है तो वह कर्मरज आकर सिर्फ टकराएगी, चिपकेगी नहीं, बंधेगी भी नहीं, तुरन्त झड़ जाएगी।
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