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________________ .. . . In. I.. # कर्मो का आस्रव और संवर १. कर्मों का आस्रव : स्वरूप और भेद २. आसव की आग के उत्पादक और उत्तेजक ३. कर्म आने के पाँच आम्रवद्वार ४. योग-आस्रव : स्वरूप, प्रकार और कार्य ५. पुण्य और पाप : आसव के रूप में ६. पुण्य कब और कहाँ तक उपादेय एवं हेय ? ७. आसवमार्ग संसारलक्ष्यी और संवरमार्ग मोक्षलक्ष्यी ८. आस्रव की बाढ़ और संवर की बाँध ९. काय-संवर का स्वरूप और मार्ग १०. वचन-संवर की महावीथी ११. इन्द्रिय-संवर का राजमार्ग १२. मनःसंवर का महत्त्व, लाभ और उद्देश्य १३. मनःसंवर के विविध रूप, स्वरूप और परमार्थ १४. मनःसंवर की साधना के विविध पहलू १५. प्राण-संवर का स्वरूप और उसकी साधना १६. प्राणबल और श्वासोच्छ्वासबल-प्राण-संवर की साधना १७. अध्यात्म-संवर का स्वरूप, प्रयोजन और उसकी साधना १८. अध्यात्म-संवर की सिद्धि : आत्मशक्ति-सुरक्षा और आत्मयुद्ध से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004244
Book TitleKarm Vignan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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