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वचन-संवर की महावीथी
काया के बाद वाणी कमों के आने का दूसरा द्वार है। वाणी के द्वारा कर्म कैसे आते हैं और उन्हें आने से कैसे रोका जा सकता है ?, इसका विस्तृत वर्णन जैनागमों, कर्मग्रन्थों तथा कर्मविज्ञान का गहराई से विश्लेषण करने वाले धवला, महाबंधो, पंचसंग्रह आदि में मिलता है। अतः हमें यहाँ समझ लेना है कि वाणी क्या है ?, उसके द्वारा कर्मों का आत्म-प्रदेश में आगमन या प्रवेश कैसे होता है ? तथा कर्मों के आने को रोकने के लिए वाक्-संवर कैसे-कैसे किया जा सकता है ? वाणी का प्रयोग क्यों और किस लिये? ___मानव जाति ने अपने दैनन्दिन व्यवहारों में परस्पर विचार-विमर्श करने तथा विचारों और कार्यों का आदान-प्रदान करने के लिए वाणी का उपयोग या प्रयोग प्रारम्भ किया। भाषा वाणी का ही परिष्कृत रूप है। इसका आविष्कार भी मानव-पूर्वजों ने इसीलिए किया था कि प्रत्येक व्यक्ति एक-दूसरे के मनोभावों को, कार्य की गतिविधि को और कर्तव्य-अकर्तव्य के महापुरुषों के निर्देश को स्पष्ट रूप से समझ सके। ____ आज हमें तीर्थंकरों और महाज्ञानियों की अनुभूति का अलभ्य लाभ इसी (भाषा या जिनवाणी) के कारण ही तो मिल रहा है। अन्यथा, हम उनकी अनुभूतियों को, उनके द्वारा बताये गए जीवों के आध्यात्मिक विकास-हास को, कर्तव्य-अकर्तव्य, धर्म-अधर्म, पुण्य-पाप आदि के रूप-स्वरूप को कैसे समझ पाते?
यह वाणी ही है, जिसके माध्यम से मंत्रों का विविध आध्यात्मिक, भौतिक, सामाजिक, राष्ट्रीय एवं नैतिक धार्मिक प्रगति के लिए प्रयोग कर सकते हैं। यह वाणी ही है, जिसके जरिये हम दूसरे को शत्रु भी बना सकते हैं, मित्र भी, अपना भी बना सकते हैं
और पराया भी, दूसरों का कल्याण और हित भी कर सकते हैं और अहित भी। वाणी और उसके अन्य समानार्थक लाभ
वाणी शब्दों का प्रकटरूप में उच्चारण है। जो शब्द व्यक्ति के मन में पड़े रहते हैं, उन्हीं को विविध प्रयोजनों के लिए अभिव्यक्त करना वाणी के प्रयोग से ही होता है। विविध प्रयोगों की दृष्टि से वाणी के अनेक रूप हैं। 'अमर कोश' में वाणी के पर्यायवाची शब्दों का उल्लेख करते हुए कहा गया है
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