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५४ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : उपयोगिता, महत्ता और विशेषता (४)
कहता है उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा; क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुद्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन् परमेश्वर का दान है; और न कर्मों के कारण; ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे।"
__"..........तो उसने (अनुग्रह करके) हमारा उद्धार किया; और यह धर्म के कार्यों के कारण नहीं, जो हमने आप किए, पर अपनी दवा के अनुसार नये जन्म के स्नान, और पवित्र आत्मा (का अनुग्रह) हमें नया बनाने के द्वारा हुआ।"१ .
उपर्युक्त मन्तव्य से यह स्पष्ट है कि ईश्वरकर्तृत्ववादी मसीही धर्म में नैतिक-अनैतिक कर्मों (आचरणों) का उतना महत्व नहीं, जितना ईसामसीह (प्रभु) पर विश्वास और उनका अनुग्रह प्राप्त करने का है। ईसामसीह का विश्वास और अनुग्रह प्राप्त करके जिन्दगीभर अशुभ (पाप) कर्म करने वाला डाकू भी पवित्र जीवन-जीवी ईसामसीह के साथ स्वर्ग लोक में स्थान पा सकता है; इसके विपरीत शुभ कर्म करने वाला अय्यूब नामक धर्मी व्यक्ति परमेश्वर या ईसामसीह (प्रभु) का विश्वास और अनुग्रह न पाकर विपत्ति और दुःख उठाता है। विश्वास और अनुग्रह पर जोर, अनैतिकता से बचने पर नहीं
यही कारण है कि हत्या, दंगा, अन्याय, अनीति, अत्याचार, व्यभिचार, ठगी, फूट, ईर्ष्या, युद्ध, कलह आदि अनैतिक एवं पाप कर्म करने वाला व्यक्ति यह समझकर कि ईश्वर या ईसामसीह पर विश्वास और उनका अनुग्रह प्राप्त करने मात्र से पाप कर्म का कोई भी कटुफल नहीं मिलेगा; वह धड़ल्ले स ये अनैतिक पापकर्म करता रहता है।
ईसाई धर्म में पूर्वजन्म और पुनर्जन्म की मान्यता न होने से पापी मनुष्य यह भी समझता है कि पूर्वजन्म के कर्मों का कोई उत्तरदायित्व नहीं है, और न ही पूर्वजन्म के कर्मों को भोगना है, साथ ही इस जन्म में किये हुए पापकर्म का फल भी अगले जन्म (पुनर्जन्म) में नहीं मिलेगा, अतः जितना जो कुछ हिंसादि पापकर्म किया जा सके, करतो और आनन्द से जीओ।
१. (क) जिनवाणी कर्मसिद्धान्त विशेषांक में प्रकाशित 'मसीहीधर्म में कर्म की मान्यता' लेख से
पृ.२०८ (ख) मत्ती ७:२१
(ग) तीतुस ३ :५ २. (क) जिनवाणी कर्मसिद्धान्त विशेषांक में प्रकाशित 'मसीही धर्म में कर्म की मान्यता' से
पं.२०७ (ख) लूका २३ : ३९-४३. (ग) देखें, अय्यूब १:२२.
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