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________________ ४ नैतिकता के सन्दर्भ मेंकर्मसिद्धान्त की उपयोगिता भौतिक विज्ञान के समान कर्म-विज्ञान भी कार्य-कारण सिद्धान्त पर निर्भर जिस प्रकार भौतिक विज्ञान कार्य-कारण के सिद्धान्त में आस्था प्रगट करके ही आगे बढ़ता है और नये-नये आविष्कार करता है, उसी प्रकार कर्म-विज्ञान भी कार्य-कारण सिद्धान्त के आधार पर वर्तमान जीवन की घटनाओं की व्याख्या करता है। कार्यकारण भाव के परिप्रेक्ष्य में प्रोफेसर हिरियना कर्म सिद्धान्त के विषय में लिखते हैं- "कर्मसिद्धान्त का आशय यही है कि भौतिक जगत् की भाँति नैतिक जगत् में भी पर्याप्त कारण के बिना कोई भी कार्य (कर्म) घटित नहीं हो सकता। यह समस्त दुःख का मूल स्रोत हमारे (नैतिकता - विहीन) व्यक्तित्व में ही खोज कर ईश्वर और पड़ौसी के प्रति कटुता का निवारण करता है ।"" भूतकालीन आचरण वर्तमान चरित्र में तथा वर्तमान चरित्र भावी चरित्र में प्रतिबिम्बित इसका तात्पर्य यह है कि कर्मसिद्धान्त बताता है - भूतकाल के नैतिक या अनैतिक आचरणों के अनुसार ही वर्तमान चरित्र व सुख-दुःख का निर्माण होता है, साथ ही वर्तमान नैतिक-अनैतिक आचरणों के आधार पर प्राणी के भावी चरित्र तथा सुखदुःखमय जीवन का निर्माण होता है। अतीतकालीन जीवन ही वर्तमान व्यक्तित्व कॉ निर्माण है और वर्तमान जीवन (आचरण) ही भविष्यकालीन व्यक्तित्व का विधाता है। इसका आशय यह है कि कोई भी वर्तमान शुभ या अशुभ आचरण परवर्ती शुभ या अशुभ घटना का कारण बनता है, उसी प्रकार पूर्ववर्ती किसी शुभ-अशुभ आचरण के कारण वर्तमान शुभ या अशुभ घटना घटित होती है। अतीतकालीन शुभाशुभ आचरण के अनुसार भावी परिणाम : शास्त्रीय दृष्टि में आचारांगसूत्र में जिस प्रकार कर्मसिद्धान्त के सन्दर्भ में वर्तमान के शुभ-अशुभ Outlines of Indian Philosophy, P. 71 9. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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