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आध्यात्मिक क्षेत्र में-कर्म-विज्ञान की उपयोगिता २९ अतः आध्यात्मिक क्षेत्र में जैन कर्मविज्ञान की उपयोगिता और उपादेयता, उपलब्धि और सिद्धि कम नहीं है।' कर्मविज्ञान आत्मशक्ति को कर्मशक्ति से प्रबल बताता है
कर्मविज्ञान यह बताता है कि आत्मा अनन्तशक्तिमान् है। परन्तु आत्मा जब अपनी शक्ति को भूलकर कर्मों से आबद्ध हो जाता है, तब कर्मों का वशवर्ती बना हुआ वह नाना गतियों और योनियों में चक्कर काटता रहता है, उन गतियों और योनियों में विविध प्रकार के सुख-दुःख भोगता रहता है। साथ ही कर्मविज्ञान में संवर, निर्जरा
और मोक्ष के तत्त्वज्ञान द्वारा यह भी प्रतिपादित कर दिया है कि यदि आत्मा उग्र तप, त्याग, वैराग्य, संयम एवं सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रयरूप धर्म की साधना से अपनी शक्ति को प्रखर और प्रबल बना ले तो वह कर्मशक्ति को परास्त कर सकती है। आत्मा की प्रबल शक्ति के आगे फिर कर्मशक्ति टिक नहीं सकती। कर्मविज्ञान अध्यात्मविज्ञान का विरोधी नहीं, अपितु पृष्ठपोषक व सहायक
इस प्रकार कर्मविज्ञान अध्यात्मविज्ञान का विरोधी नहीं, अपितु उसका सहायक है, उसके द्वारा प्रतिपादित आध्यात्मिक अवस्थाओं का पृष्ठपोषक बनकर वह व्यावहारिक दृष्टि से आत्मा की कर्मजनित सांसारिक अवस्थाओं का, विश्ववैचित्र्य का सांगोपांग निरूपण करता है। जिससे जिज्ञासु और मुमुक्षु व्यक्ति कर्म के हेयोपादेयत्व का रहस्य समझकर अपनी आध्यात्मिक उत्क्रन्ति कर सके। कर्मविज्ञान वैभाविक और स्वाभाविक, दोनों अवस्थाओं का ज्ञान कराता है ___ जब तक आत्मा के वैभाविक रूप का ज्ञान नहीं हो जाता, तब तक उसके स्वाभाविक रूप को भी भलीभांति नहीं जाना जा सकता। कर्मविज्ञान संसारी आत्मा के वर्तमान वैभाविक रूप का दर्शन करा कर उसके स्वाभाविक रूप को-शुद्ध स्वरूप को प्राप्त करने का उपाय बताता है। इस प्रकार कर्मविज्ञान अध्यात्मविज्ञान की पृष्ठभूमि के रूप में आध्यात्मिक विकास में मार्गदर्शक बनता है। . आत्मा की वर्तमान में दृश्यमान विविध वैभाविक अवस्थाओं और उनके कारणभूत विविध कर्मों का चित्रण प्रस्तुत किये बिना केवल उसके पारमार्थिक रूप के चिन्तन को प्रस्तुत करने मात्र से आध्यात्मिक विकास नहीं हो सकता। इस दृष्टि से कर्मविज्ञान संसारी आत्माओं की वर्तमान में सुखी-दुःखी, सम्पन्न-विपन्न, धनी-निर्धन, बुद्धिमान्-मूर्ख आदि विविध अवस्थाओं के व्यावहारिक रूपों का चिन्तन प्रस्तुत करता
१ कर्मग्रन्थ भा. ५ की प्रस्तावना (पं.कैलाशचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री) से भावांश उद्धृत पृ.३१ २ कर्मप्रकृति (शिवशर्म सूरि रचित) में प्रकाशित 'कर्मसिद्धान्त : एक विश्लेषण' से भावांश उद्धृत पृ.
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