SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 469
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १० पुण्य-पाप के फलः हार और जीत के रूप में पुण्य-पाप के खेल में एक की जीत और एक की हार : क्यों और कैसे? सांसारिक (कर्मबद्ध) प्राणियों का जीवन ताश के पत्तों के खेल की तरह है। ताश के अच्छे-बुरे पत्तों की तरह पूर्वकृत कर्मों के उदय से उन्हें जीवन के विभिन्न क्षेत्र मिलते हैं, वे अच्छे भी मिलते हैं और बुरे भी। जो कुशल खिलाड़ी होता है, उसके पास बहुत बुरे पत्ते आये हों, तब भी वह खेल में जीत जाता है। इसी प्रकार पुण्य-पाप कर्मों का जो कुशल खिलाड़ी होता है, वह पूर्वकृत पापकर्मवश बुरे संयोग, बुरे द्रव्य-क्षेत्र -काल- भाव और परिस्थिति के रूप में दुष्कर्मफल मिलने पर भी अपने सत्पुरुषार्थ से, अपने कौशल से उन्हें पुण्यकर्मों में संक्रमित (परिवर्तित ) करके अथवा रत्नत्रयरूप धर्म एवं तपश्चरण शुद्ध पुरुषार्थ करके उन कर्मों को क्षय कर डालता है। इसके विपरीत जैसे- अकुशल खिलाड़ी के पास ताश के अच्छे पत्ते आने पर भी वह उस खेल में बाजी जीत नहीं पाता। इसी प्रकार पुण्य-पाप के खेल के अकुशल खिलाड़ी के पास पूर्वपुण्यकर्मवश अच्छे संयोग तथा अच्छे द्रव्य, क्षेत्र, काल (अवसर), भाव और परिस्थिति के योग मिलने पर भी वह खेल को बिगाड़कर धर्म, पुण्य और उनके फल अर्जित करने की बाजी हार जाता है, वह अन्त तक बाजी हारता ही जाता है ।" हरिकेशबलमुनि ने पापमयी स्थिति पर विजय प्राप्त करके पुण्यमयी और मोक्षसुखमयी बना ली हरिकेशबलमुनि को पूर्वकृत पापकर्मवश बुरे संयोग, खराब परिस्थिति, तथा बुरे द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव मिले थे; किन्तु जब से वह संभले, एक कुशल कर्म-खिलाड़ी बनकर अपने तप, संयम और त्याग के पुरुषार्थ से अधिकांश कर्मों का क्षय कर डाला। संचित अशुभकर्मों को शुभकर्मों (पुण्य) में परिवर्तित कर डाला। इस प्रकार उन्होंने १. देखें-- डॉ. राधाकृष्णन् लिखित - ' जीवन की आध्यात्मिक दृष्टि, पृ. २९२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy