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३५२ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मफल के विविध आयाम (५
(५)
परिणाम के निमित्त से दर्शनावरण में तरतमता और विशेषता प्राप्त होती है । द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव भी निद्रा आदि पाँचों में विशिष्ट कारण होते हैं। जैसे-दही पीने पर नींद · अधिक आती है, शीत प्रधान क्षेत्र में भी निद्रा अधिक आती है, इसी प्रकार ग्रीष्मकाल में या रात्रि में नींद आने लगती है, प्रवचन या अरुचिकर विषय के श्रवण में दिलचस्पी न होने से नींद आने लगती है। शराब या नशीली वस्तु के या नींद की गोलियों के सेवन से भी निद्रा, या मूर्च्छा आ जाती है।'
गति आदि के निमित्त से कर्मफल का तीव्र विपाक
उभयतः
यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि गति आदि विशिष्ट वस्तुओं के कारण, तथा स्व-पर एवं उभय से उदीरित ज्ञानावरणीय आदि कर्म स्वतः परतः या स्व-पर : फलोन्मुख (उदय को प्राप्त) होता है । इसी दृष्टि से गतिंपप्प - कोई कर्म किसी गतिविशेष को पाकर तीव्र अनुभाव (फल) वाला हो जाता है । जैसे- नरकगति को प्राप्त करके जीव असातावेदनीय का तीव्र अनुभाव (फल) प्राप्त करता है। नरकगति में नारकों के लिए असातावेदनीय जितना तीव्र होता है, उतना तिर्यंचगति या मनुष्यगति वाले जीवों के लिए नहीं ।
इसी प्रकार ठिइंपप्प - अर्थात् स्थिति विशेष को - सर्वोत्कृष्ट स्थिति को प्राप्त अशुभ-कर्म बांधा हुआ जीव मिथ्यात्व के समान तीव्र अनुभाव (फल) का भागी होता है।
भवंपप्प-भव जन्म को प्राप्त करके । जैसे - मनुष्यभव या तिर्यञ्चभव को प्राप्त करके जीव निद्रारूप दर्शनावरणीय कर्म का विशेष अनुभाव (फल) प्राप्त करता है।
तात्पर्य यह है कि ज्ञानावरणीय आदि बद्धकर्म उस-उस गति, स्थिति या भव को प्राप्त करके (पर-निरपेक्ष होकर) स्वयं फलाभिमुख (उदय को प्राप्त) होता है।
कहीं-कहीं पर-निमित्त से भी ज्ञानावरणीय आदि कर्म फलाभिमुख (उदय को प्राप्त) हो जाते हैं।
पोग्गलं पप्प–किसी पुद्गल विशेष को प्राप्त करके । जैसे- किसी के द्वारा रोष वश या द्वेषवश फेंके काष्ठ, डंडा, ढेला, पत्थर या तलवार आदि के योग से या फिर काष्ठ, ढेला, पत्थर या तलवार आदि पुद्गलों के अकस्मात् गिरने से या प्रहार से, आघात से असातावेदनीय आदि कर्म का, अथवा, क्रोधादिरूप कषाय मोहनीय कर्म आदि के उदय से अनुभाव (फलभोग) होता है।
१.
(क) प्रज्ञापना खण्ड ३, पद २३ के अनुभाव द्वार के सू. १६८० का मूलपाठ एवं विवेचन ( आ. प्र. स. ब्यावर ) पृ. १५,२१, २२
(ख) जैनतत्त्व कलिका, कलिका ६, पृ. १७८
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