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कर्मफल : यहाँ या वहाँ, अभी या बाद में ? ३३५
जिनके सम्बन्धियों को निर्दोष होते हुए भी उसने सजा दी थी, और फांसी पर चढ़वाया था, ऐसे लोगों ने उक्त क्रूर न्यायाधीश-काज को पकड़ लिया और उसे ऐसे कमरे में छोड़ दिया, जहाँ पहले से ही हजारों बिच्छू रख दिये गए थे। कोई तीन दिन में उसकी मृत्यु हुई।
___ जब उस कमरे में से काज की आवाज आनी बंद हो गई, तब लोगों ने उसे बाहर निकाला। उसके शरीर पर ऐसा कोई भी स्थान नहीं बचा था, जहाँ बिच्छुओं ने दंश न दिया हो। इस प्रकार रिब-रिबकर मरने के रूप में कार्पेज को अपने पापकर्मों का फल भोगना पड़ा। क्रूरकर्मा इवान को अपनी करणी का फल मिला
रूस के कटेलिया प्रदेश का एक क्रूर एवं वासनान्ध जागीरदार ‘इवान' भी इसी प्रकार का क्रूर कर्म करने वाला था। उसने अपनी वासनापूर्ति के लिए सैकड़ों महिलाओं के साथ अत्याचार किया था। उनमें से कइयों ने तो आत्महत्या कर ली थी। कई अबोध बालिकाएँ इस क्रूर कर्म को सहन न कर पाने के कारण मर गई थीं। इसके अलावा उसने हजारों निरपराध व्यक्तियों को मरवा डाला था।
जब इसके पाप कर्मों का घड़ा भर चुका तो इसे रूस की कम्युनिस्ट क्रान्ति (सन् १९१८-१९) के समय वहाँ से अपनी पत्नी और बालक-बालिका के साथ भागना पड़ा। सेंट पीटर्सवर्ग से कुछ मील दूर ग्रेनाइट पत्थरों से बनी एक कॉटेज में उन्होंने शरण ली। यह कॉटेज कभी 'इवान' का विलासमहल रह चुका था। वहाँ का प्रत्येक पत्थर ‘इवान' के क्रूर कर्मों का साक्षी था। उसे अपने क्रूर कर्म बीभत्स और भयावह रूप में याद आने लगे। उसने अपनी क्रूर पत्नी अन्ना और दोनों बच्चों को अपने बूढ़े मल्लाह के साथ वहाँ से रवाना कर दिया। अन्ना रास्ते में ही विक्षिप्त होकर नदी में कूद पड़ी। इवान ने अतीत में किये हुए क्रूर कर्मों की स्मृति से बुरी तरह भयभीत होकर नेवा झील में कूदकर आत्महत्या कर ली।
सचमुच, मृत्यु के समय ऐसे पापी व्यक्ति को अपने सारे क्रूर कर्म याद आते हैं और वह उनसे डर कर स्वयं का उत्पीड़न करने लगता है। मुसोलिनी के पाप का घड़ा अन्त में फूट कर रहा
इटली के तानाशाह मुसोलिनी ने जनता का शोषण करके अरबों रुपये की सम्पत्ति-सोने की छड़ें, हीरे-जवाहरात, पौंड पैंस और डालरों के रूप में जमा की थी। यह
१. वही, दिसम्बर १९७८ से पृ. १९ .. २. वही, दिसम्बर १९७८ पृ. १८
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