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कर्मफल : यहाँ या वहाँ,
अभी या बाद में?
जैसा कर्म : वैसा ही फल मिलेगा? ____ भारत के जनजीवन में, यहाँ तक कि जनता की रग-रग में कर्म-शब्द रमा हुआ है। झौंपड़ी से लेकर महलों तक व्यक्ति-व्यक्ति की जबान पर यह वाक्य चढ़ा हुआ है कि 'जैसा कर्म करोगे, वैसा ही फल मिलेगा'। नीम का बीज बोओगे तो आम का फल कैसे मिलेगा? जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे? जैसी करणी, वैसी भरणी। एक व्यक्ति छिपकर एकान्त स्थान में अँधेरे में भी पापकर्म करेगा, उसका भी फल उसे मिले बिना नहीं रहेगा। एक व्यक्ति प्रकट रूप में तो बहुत ही भला, भद्र और मिलनसार तथा मधुरभाषी मालूम होता है, परन्तु प्रच्छन्नरूप से वह मन ही मन दूसरों का शोषण करने का प्लान बनाता है, विक्रेय वस्तुओं में मिलावट करता है, तौल-नाप में गड़बड़ करता है, एक वस्तु दिखाकर दूसरी वस्तु देता है, दूसरों की रखी हुई अमानत या धरोहर को हजम कर जाता है, झूठे दस्तावेज बनाता है, झूठी साक्षी दिलाता-देता है, मिथ्या-दोषारोपण करके दूसरे को फंसा देता है और उससे रुपये ऐंठ लेता है। क्या उसे अपने इन कुत्सित कर्मों का फल नहीं मिलेगा? भले ही ऐसा व्यक्ति भगवान् की या देवी-देवों की भक्ति एवं मनौती करता हो, प्रभु की स्तुति, प्रार्थना या स्तोत्र पाठ अथवा भजन करता हो, घंटों मंदिर में बैठकर भगवत्भजन, पूजन-अर्चन करता हो, परन्तु इस प्रकार की पूजा-पत्री मात्र से पूर्वोक्त कुत्सित कर्मों का फल मिट नहीं जाएगा।' पश्चात्ताप-प्रायश्चित्तादि से कृतपाप-कर्मफल से बचाव
यदि व्यक्ति अपने द्वारा कृत अशुभ कर्मों की शुद्ध हृदय से आलोचना, निन्दना (पश्चात्ताप), गर्हणा करे, प्रायश्चित्त ग्रहण करे तथा भविष्य में वैसा कुकर्म न करने का संकल्प (नियम) ले, जिसके साथ उसने ऐसा दुष्कर्मयुक्त व्यवहार किया हो, उससे
१. अखण्डज्योति १९७८ जुलाई (श्रीराम शर्मा आचार्य) के अंक से पृ. ३७
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