SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 322
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - क्या कर्मफल-भोग में विनिमय या संविभाग है? एक के शुभाशुभ कर्म फल को दूसरा कोई भी ले या दे नहीं सकता आत्म-कर्तृत्व का स्वीकार करने के साथ-साथ जैनकर्मविज्ञान-विशेषज्ञों के समक्ष जब यह प्रश्न आया कि क्या कोई दूसरा व्यक्ति या ईश्वर आदि किसी के पुण्य-पाप के फल को स्वयं ग्रहण कर सकते हैं ? जैनकर्मविज्ञान ने इसका समाधान किया कि स्वकृत कर्म के लिए व्यक्ति या समूह स्वयं ही जिम्मेदार है। वही व्यक्ति या समूह स्वकृत शुभाशुभ कर्म का फल स्वयं ही भोगता है। ईश्वर या कोई शक्ति, या अन्य कोई व्यक्ति किसी दूसरे के पुण्य या पाप के फल को न तो दे सकता है, और न ही उससे ले सकता है। भगवद्गीता में तो स्पष्ट कहा गया है-"ईश्वर न तो किसी के पाप को ग्रहण करता है, न पुण्य को। जीवों का ज्ञान अज्ञान से आवृत है। अतः उस अज्ञान (भावकर्म) के कारण मोह से मूढ़ हो जाते हैं।" ___सामायिक पाठ में आचार्य अमितगति सूरि ने कहा है-"जिस आत्मा ने पूर्वकाल में स्वयं जो कर्म किया है, उसी का शुभाशुभ फल वही प्राप्त करता है। यदि वह जीव दूसरे के द्वारा दिये हुए फल को प्राप्त करता है, तो स्वकृत कर्म निरर्थक ही सिद्ध होगा।" जिस प्रकार अपने द्वारा पठित विद्या का-ज्ञानप्राप्ति का लाभ दूसरा नहीं प्राप्त कर सकता, न ही वह व्यक्ति दूसरे को उसके बिना मेहनत किये ज्ञान दे सकता है, इसी प्रकार अपने द्वारा कृतकर्म का फल न तो व्यक्ति दूसरे को दे सकता है, न ही दूसरे के कर्म का फल स्वयं ले सकता है, और न दूसरा प्राप्त कर सकता है। अतः यह निश्चित है कि १. (क) नादत्ते कस्यचित् पापं, न चैव सुकृतं विभुः। अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तवः।। (ख) स्वयं कृतं कर्म यदाऽऽत्मना पुरा, फलं तदीयं लभते शुभाशुभम्।। परेण दत्तं यदि लभ्यते स्फुटं, स्वयं कृतं कर्म निरर्थकं तदा।।-सामायिक पाठ (ग) कत्तारमेव अणुजाइ कम्मे। -उत्तरा. २0/२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy