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________________ ३०० कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मफल के विविध आयाम (५) (१) वैयक्तिक कर्मफल-एक व्यक्ति बिलकुल निरोग है। उसके शरीर में किसी भी प्रकार का शारीरिक या मानसिक रोग नहीं है, किन्तु एक दिन वह कहीं जा रहा था, अक्समात् किसी ने उस पर पत्थर फेंका और घटनास्थल पर ही उसकी मृत्यु हो गई। यह मृत्यु स्वाभाविक नहीं, स्वयं प्राप्त नहीं, स्वयं द्वारा उदीर्ण (आत्महत्यापरक) नहीं, किन्तु दूसरे व्यक्ति के द्वारा उदीरित मृत्यु है। जो मौत कई वर्षों पश्चात होने वाली थी, वह दूसरे के द्वारा पाषाण-प्रहार से तत्काल हो गई। यह व्यक्तिगतरूप से पूर्वकृत कर्मबन्ध का दूसरे के निमित्त से उक्त कर्म को उदीरित करके वैयक्तिक रूप से शीघ्र मृत्युरूप फल भोगना हुआ। (२) सामूहिक कर्मफल-इसी प्रकार सामूहिक रूप से शीघ्र कर्मफल भोग भी होता है। एक समूह किसी बस से किसी तीर्थयात्रा पर जा रहा है। उसमें स्त्री-पुरुष, वृद्ध-युवक एवं बच्चे भी हैं। बहुत ही आनन्द से, स्वस्थतापूर्वक यात्रा हो रही है, अक्समात कुछ सशस्त्र आतंकवादी उस बस में चढ़ गए। ड्राइवर एवं कंडक्टर को बंदूक की नोक पर बस रोकने या जंगल में ले चलने को बाध्य कर दिया। और फिर उसमें बैठे हुए ड्राइवर कंडक्टर समेत सभी यात्रियों को गोलियों से भून डाला। उनके पास से जो धन, आभूषण आदि मिले; लेकर चम्पत हो गए। इस घटना में एक साथ ४०-५० व्यक्तियों को अपनाअपना पूर्वकृत कर्मबन्ध, जो वर्षों बाद उदय में आता, उक्त आतंकवादियों द्वारा तत्काल उदीरणा करके विपाकावस्था में लाकर फल भुगवाने में तत्पर हो गया। यह सामूहिक रूप से बद्ध कर्म का परेण उदीरित शीघ्र सामूहिक कर्मफल की घटना है। भ. महावीर ने जिस प्रकार व्यक्ति को मुक्त होने की स्वतन्त्रता दी है, वैसे ही समूह को भी कमों से मुक्त होने की स्वतन्त्रता प्रदान की है। इसका प्रमाण है-एक समय में एक साथ १०८ व्यक्तियों के सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होने का विधान। अतः जैसे एक साथ सामूहिक रूप से कर्मबन्ध का विधान है, वैसे ही एक साथ सामूहिक रूप से कर्ममुक्त होने का भी विधान है। गौतम स्वामी के ५०३ शिष्य उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर बने थे। उन्हें गौतम स्वामी के केवलज्ञान होने से पूर्व ही एक साथ केवल ज्ञान और वीतरागत्व प्राप्त हो गया था। भूकम्प आदि आकस्मिक दुर्घटना के निमित्त से हजारों को एक साथ कर्मफल प्राप्ति इसी प्रकार सामूहिक रूप से भूकम्प, बाढ़, महामारी, प्लेग आदि संक्रामक बीमारियाँ, इत्यादि आकस्मिक विपत्तियाँ उदीरित होती हैं। इन विपदाओं के आने पर एक साथ हजारों, लाखों व्यक्तियों को वे अपनी चपेट में ले लेती हैं। सामहिक रूप से पूर्वबद्ध जो कर्म न जाने कब विपाक में (फल भुगवाने) आता, वह किसी पर-निमित्त के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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