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________________ कर्म अपना फल कैसे देते हैं ? २७३ १०. लूनोखोद-यह एशिया का नया चमत्कारिक यंत्र है, जो कार के आकार का है। यह चन्द्रमा के भूतल पर भ्रमण करता है और वहाँ की भूमि को खोदता है, वहाँ की मिट्टी एकत्रित करके उठाता है। इसकी एक खूबी यह है कि एशिया के वैज्ञानिकों ने इसका गेयर(Gear) बदल दिया है। इसमें एक लेबोरेट्री भी है, जो सभी वस्तुओं का चेकअप (जांच-पड़ताल) करके उसके फोटो नीचे (पृथ्वी पर) भेजती है। एक विलक्षण बात यह है कि इस यंत्र में बैठा हुआ मनुष्य जब सांस लेता है तो उस सांस की भी आवाज नीचे (पृथ्वी तल पर) बैठे हुए वैज्ञानिक सुन सकते हैं। इतना ही नहीं, उस यंत्र में कोई खराबी हो जाए तो नीचे के वैज्ञानिक लोग नीचे बैठे-बैठे ही उसे सुधार सकते हैं। इतना नियंत्रण और घनिष्ठतम सम्पर्क लूनोखोद से हजारों मील दूर नीचे बैठे हुए वैज्ञानिकों का है। यह परमाणुशक्ति का ही चमत्कार समझना चाहिए। जड़ टाइमबम चेतनाहीन है, फिर भी उसके साथ टकराने या छूने से वह समय पर फूटता है और तबाही मचा देता है। अतः अब यह कहने और सोचने का युग बीत गया है कि परमाणु जड़ है, इसे अपने भले-बुरे का ज्ञान-विवेक नहीं है, वह क्या कर सकता है ? अब तो विविधलक्षी परमाणुओं की विलक्षण शक्ति साकार होकर सामने आ रही है और कर्म-परमाणुओं की विलक्षण शक्तियों के स्वर में अपना स्वर मिलाकर यथार्थता को प्रमाणित और उद्घोषित करने जा रही हैं।' जड़ पदार्थों की शक्ति का प्रकटीकरण आत्मचेतना का सम्पर्क होने पर ही एक बात इस सम्बन्ध में अवश्य समझ लेनी चाहिए कि इन विविध जड़ परमाणुओं में या जड़ पदार्थों में अमुक-अमुक फल देने की जो शक्ति निर्मित होती है, वह आत्मचेतना का सम्पर्क होने पर या जीव के द्वारा अमुक विधि से उससे सम्पर्क करने पर-सम्बद्ध होने पर या प्रेरित करने पर ही वह अपना प्रभाव दिखला सकती है, वह शक्ति उजागर होकर अपना यथोचित फल दे सकती है। - जैसे-कि उपर्युक्त पारमाणविक विविध यंत्रों का भी मनुष्यों के द्वारा सम्पर्कसंचालन या सम्बन्ध होने पर ही उनका यथोचित प्रभाव देखा गया अथवा उनकी पयायोग्य फलप्रदान शक्ति का प्रत्यक्षीकरण हुआ, इसी प्रकार कर्मपरमाणुओं में फल देने की शक्ति तो पड़ी रहती है, मगर वह व्यक्त तभी होती है जब कर्मपरमाणु जीव के रागद्वेषादि परिणामों से आकृष्ट होकर आत्मा से सम्बद्ध-श्लिष्ट हो जाते हैं, और तभी १. वही, साभार उद्धृत, पृ. ५३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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