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________________ २६८ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मफल के विविध आयाम (५) जड़-परमाणुओं की विलक्षण शक्ति के चमत्कार .. परमाणुओं में कितनी आकर्षण और विस्मयोत्पादक विलक्षण शक्ति है, और आधुनिक वैज्ञानिकों ने उन परमाणुओं की शक्ति का अन्वेषण करके किस-किस प्रकार से असम्भव को सम्भव करके दिखला दिया है ? इसके कुछ प्रत्यक्ष उदाहरण पण्डितवर्य श्री ज्ञान मुनिजी ने प्रस्तुत किये हैं “उन दिनों भारत के जाने-माने वैज्ञानिक श्री हंसराज जी 'वायरलेस' लुधियाना आए। उन्होंने वहाँ के आर्यसमाज मंदिर (दाल बाजार) में वैज्ञानिक शक्तियों के अनेकों आश्चर्योत्पादक चमत्कार दिखलाए। परमाणुओं के विचित्र और विलक्षण चमत्कारों का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने मस्तिष्क को चकरा देने वाली अनेकों वस्तुएँ जनता के समक्ष रखी थीं१. आवाज पर चलने वाला बिजली का पंखा-... एक बिजली का पंखा दिखलाया, जो सुयोग्य पुत्र की तरह आज्ञा का पालन करता है-'चलो' कहते ही चल पड़ता है तत्काल हवा फैंकने लगता है और 'रुको' कहते ही तत्काल खड़ा हो (स्थिर हो) जाता है। हवा बिखेरना बंद कर देता है। अद्भुत नल-. . . यह नल इतना विस्मयोत्पादक है कि मनुष्य के सामने और निकट आते ही जल गिराने लगता है और जब मनुष्य उसके आगे से हट जाता है, तब तत्काल जल गिराना बंद कर देता है। बिजली का बल्ब-बिजली का एक ऐसा बल्ब दिखलाया गया, जो बिजली के पंखे की तरह मालिक के आदेशानुसार काम करता है। उसे 'जलो' यह आज्ञा देते ही वह तत्काल प्रकाशमान हो उठता है, ....... .. परन्तु जब उसे 'बुझ जाओ' यह संकेत किया जाता है, तो वह तत्काल बुझ जाता है, प्रकाश देना बंद कर देता ४. जीवित मानव (शरीर) का रेडिओ (यंत्र)-यह विज्ञान का एक विलक्षण चमत्कारिक आविष्कार है। मनुष्य को एक विशेष प्रकार का मिक्सचर (एक पेय औषधि, जिसमें कई दवाइयाँ मिली रहती हैं) पिला दिया जाता है। उस मिक्सचर के शरीर में प्रवेश करते ही उक्त मनुष्य का शरीर रेडिओ (यंत्रवत्) बन जाता है। उससे फिर रेडिओ का प्रोग्राम (कार्यक्रम) सुना जा सकता है। टेलीविजन-टेलीविजन का शाब्दिक अर्थ है-व्यवधान रहते हुए भी दूर की वस्तु को देखने की क्रिया। वैसे यह एक वैज्ञानिक यंत्र है, जिससे कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले व्यक्तियों के चित्र देखे जाते हैं। टी. वी. स्टेशन में कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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