SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 265
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्मों का फलदाता कौन ? २४५ स्थान पर डाका डालने की योजना बना रहा है, अथवा अमुक हत्यारा अमुक व्यक्ति की हत्या करने के फिराक में है तो वह शासक पहले से ही उस अपराध को रोकने और अपराध करने का प्लान बनाने वाले को पकड़कर जेल में बंद कर देता है। वह कड़ा प्रबन्ध करता है कि अपराधी वृत्ति का व्यक्ति अमुक अपराध या दुष्कर्म करने न पाए। स्थिति के बिगड़ने से पहले ही वह उसे काबू में करने के प्रयास करता है। कदाचित् एक बार अपराधी अपने मकसद में कामयाब हो जाए तो भी उसके पश्चात् शासक उसका कठोरता से दमन करके सदा के लिए वहाँ अपराध होने से रोक देता है। शासक का यह कर्तव्य भी है कि दुष्कर्म होने से पहले ही उसकी रोकथाम करे अथवा एक बार उसके अनजाने में वह काण्ड हो भी जाए तो उसकी पुनरावृत्ति होने से पूरी तरह रोक दे। ___ जब साधारण बुद्धि वाले शासक में इतनी कर्त्तव्यपरायणता, शक्तिसम्पन्नता तथा न्यायकारिता है तो ईश्वर जैसे सर्वज्ञ, घट-घट के अन्तर्यामी, सर्वशक्तिमान्, न्यायी एवं दयालु परमात्मा का कर्तव्य होता है कि वह अपराधी की भावना को बदल दे, अथवा जनता को पीड़ा पहुँचाने की उसने जो योजना बनाई है, उसे बदल दे या उसके मार्ग में ऐसी विघ्न-बाधाएँ उपस्थित करदे कि वह पूर्वयोजित अपराध कर ही न सके। क्योंकि सर्वज्ञ होने के नाते उसे यह पहले ही ज्ञात हो जाता है कि अमुक व्यक्ति अमुक समय पर अमुक जगह जनोत्पीड़क दुष्कर्म करने वाला है। अपराधी के भावों को जानता हुआ ईश्वर उसे क्यों नहीं रोकता? ___ इसके बावजूद, यदि वह (परमात्मा) अपराधी के या दुष्कर्मकर्ता के क्षण-क्षण के भावों को जानता हुआ भी तथा अपराध को रोकने का सामर्थ्य रखता हुआ भी अपराधी या दुष्कर्मी को मनमाना अपराध या दुष्कर्म करने देता है, तो मानना पड़ेगा कि वह अपने कर्तव्य से भ्रष्ट होता है, अथवा वह सर्वज्ञ या सर्वशक्तिमान् नहीं है। यदि यह कहा जाए कि उसने जीवों को अपनी इच्छानुसार कर्म करने की स्वतंत्रता दे रखी है। सभी जीव अपनी इच्छानुसार कर्म करते हैं, परमात्मा तो उनके द्वारा कर्म किये जाने में बाधक नहीं बनता। ऐसी स्थिति में कहना चाहिए कि तथाकथित परमात्मा जो भी कर्मफल देता है, उसका उद्देश्य प्राणियों पर दया करके उनका जीवन सुधारना या उन्हें सच्ची राह चलाना नहीं है, किन्तु अपने मनोविनोद या लीला करने अथवा शासन की महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए वह ऐसा करता है।' ___ अगर तथाकथित ईश्वर में दयालुता या कर्त्तव्यपरायणता होती तो वह उन जीवों को दुष्कर्म करने से पहले ही रोक देता, उनका मानस बदल देता। इसी प्रकार वह जानता १. कर्मवाद : एक अध्ययन से भावांश, पृ. ७२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy