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कर्म-विज्ञान का यथार्थ मूल्य-निर्णय )
आस्तिक के लिए वस्तु के अस्तित्त्व के साथ वस्तुत्व एवं मूल्य निर्णय भी आवश्यक
जैनदर्शन अस्तिवादी है, आस्तिक है। वह विश्व के सभी पदार्थों का अस्तित्व मानता है। जो वस्तु वास्तव में है, उसके लिए इन्कार करना जैनदर्शन को कथमपि अभीष्ट नहीं है। परन्तु इतना कहने मात्र से अथवा इतना प्ररूपण कर देने मात्र से आस्तिक्य सिद्ध नहीं हो जाता। आस्तिकता के लिए पदार्थ के अस्तित्व के साथ-साथ उसका वस्तुत्व (वस्तुस्वरूप) बताना भी अनिवार्य है और यथार्थ मूल्यांकन अथवा हेय-ज्ञेय-उपादेय की दृष्टि से उसका यथार्थ गुणनिर्णय करना भी अनिवार्य है।' तीर्थंकरों ने वस्तु के वस्तुत्व एवं गुणधर्मत्व का प्ररूपण किया
किसी वस्तु का अस्तित्व तो स्वयंजात होता है, उसे कोई अस्वीकार करे, उसका कोई अर्थ नहीं। अस्तित्व की दृष्टि से तो सभी पदार्थ समान हैं। जैनदर्शन के आद्यप्ररूपक सर्वज्ञ सर्वहितैषी तीर्थंकरों ने विश्व के सभी पदार्थों को छह भागों में वर्गीकृत करके कहा कि यह विश्व षड्द्रव्यात्मक' है। यों तो इन छह भागों को संक्षेप में कहना चाहें तो जीव और अजीव इन दो तत्त्वों में सारे विश्व को समाविष्ट कर सकते हैं। ___ अस्तित्व की दृष्टि से जीव और अजीवरे दोनों समान हैं। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय, ये पांचों अस्तिकाय अस्तित्व की दृष्टि से समान हैं, किन्तु तीर्थकरों ने इनके पृथक्-पृथक् वस्तुत्व तथा गुणधर्मत्व (उपयोगिता) का कथन किया है।
तत्त्वज्ञ पुरुषों का कार्य केवल अस्तित्व का निर्णय या विचार करना ही नहीं, किन्त उन-उन तत्त्वों के वस्तुत्व (यथार्थ स्वरूप) का निश्चय करना और उनके गुणधर्म, उपयोगित्व या मूल्य का निर्धारण करना भी है।
१. जैनतत्त्व कलिका (आचार्य आत्माराम जी) पृ.२०३ २. धम्मो अधम्मो आगासं कालो पुग्गल जंतवो। ___एस लोगोत्ति पन्नत्तो, जिणेहिं वरदंसिहिं। ३. "जीवा चेव अजीवा य, एस लोए वियाहिए।
-उत्तराध्ययन सूत्र २८/७
-उत्तरा.३६/२
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