SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९६ -कर्म-विज्ञान : भाग-२ : उपयोगिता, महत्ता और विशेषता (४) समाजवादी व्यवस्था और कल्पातीत व्यवस्था में अन्तर समाजवादी व्यवस्था में तो सबके पास एक सरीखी ऋद्धि, सम्पत्ति और लेश्या (वृत्ति), प्रकृति, कान्ति एवं प्रभाव समान नहीं होता; जबकि कल्पातीत दिव्य आत्माओं में ये सब सम्पदाएँ समान होती हैं । शरीरबल और चिन्तन भी समाजवादी व्यवस्था में समान नहीं होता; जबकि कल्पातीत देवों में समान होता है। ऐसी कल्पातीत समता शताधिक या सहस्नाधिक वर्षों की आध्यात्मिक साधना के पश्चात् प्राप्त होती है। बाह्य परिवर्तन के साथ-साथ उनका आन्तरिक परिवर्तन भी अत्यधिक हो जाता है। कर्मवाद सिद्धान्त के अनुसार सर्वांग परिवर्तन का यह शुभ परिणाम आता है; जबकि समाजवाद सिद्धान्त द्वारा कृत परिवर्तन इसके सामने कुछ नहीं है। आर्थिक समानता का प्रयोग : कर्मवाद - सिद्धान्त का पूरक निष्कर्ष यह है कि कर्मवाद का सर्वाधिक विशद निरूपण करने वाले आगमों में कल्पातीत समानता के इस उल्लेख पर से हम कह सकते हैं कि आर्थिक समानता और कर्मवाद - सिद्धान्त में संघर्ष नहीं है, बल्कि आर्थिक समानता का यह प्रयोग कर्मवादसिद्धान्त को क्रियान्वित करने में किसी अपेक्षा से पूरक ही सिद्ध होगा । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy