SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन कर्मविज्ञानःजीवन-परिवर्तन का विज्ञान जीवन के प्रत्येक क्षेत्र और अंग में कर्म का संचार प्राणिमात्र के जीवन के साथ केवल शरीर, शरीर के अंगोपांग, इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि, वचन आदि ही नहीं, और भी अनेक वस्तुएँ जुड़ी हुई होती हैं। जिस तरह शरीरादि सब प्रत्यक्ष दृश्यमान अथवा अनुमेय पदार्थ कर्मोपाधिक हैं, अर्थात् पूर्वकृत कर्म-विशेष के कारण प्राप्त होते हैं, इसी प्रकार जीवन के साथ जुड़े हुए अच्छे-बुरे स्वभाव, अच्छी-बुरी आदतें, शुभ-अशुभ रुचियां, शुभ-अशुभ मानसिक, कायिक प्रवृत्तियाँ, शुभ-अशुभ लेश्याएँ, सम्यक्-मिथ्यादृष्टि, शुभ-अशुभ चिन्तन या विचार, अथवा परिणाम, विभिन्न संज्ञाएँ, क्रोधादि कषायों की तीव्रता-मन्दता, कामवासना की तीव्रतामन्दता, सम्यक्-मिथ्याज्ञान तथा ज्ञान की विभिन्नता-तरतमता, विभिन्न गतियाँ, विभिन्न योनियाँ, पर्याप्तियाँ-अपर्याप्तियाँ आदि सब कर्म से सम्बन्धित हैं, वे भी कर्मोपाधिक हैं। ये सब आत्मा की अपनी वस्तुएँ या गुण नहीं हैं, बाहर से आई हुई वस्तुएँ हैं। जो बाहर से आता है, वह चला भी जाता है; उसमें परिवर्तन भी होता है। जैसे बचपन, जवानी और बुढापा बाहर से आते हैं, और अवस्था के अनुसार शरीर से संलग्न हो जाते हैं, वैसे ही ये विभिन्न उपाधियाँ (आत्मबाह्य वस्तुएँ) बाहर से आती हैं, कर्मों के कारण आत्मा से चिपक जाती हैं।' ..... फिर कर्म में इन वृत्तियों, प्रवृत्तियों और रुचियों आदि के कारण परिवर्तन होते रहते हैं। ये परिवर्तन अच्छे भी होते हैं, बुरे भी। जैन कर्मविज्ञान उपर्युक्त वस्तुओं के परिवर्तन के साथ-साथ कर्म की गतिविधि अथवा विशिष्ट कर्म की रचना में परिवर्तन बताता है। जैनकर्मविज्ञान : गति-प्रवृत्ति आदि में परिवर्तन बताने वाला थर्मामीटर ... कर्म विशेष में यह परिवर्तन जब होता है, तब जीवन की गतिविधि में भी परिवर्तन होता है। कई बार तो यह परिवर्तन एक ही बार के कर्म-विश्लेषण को सुनने, १. कम्मुणा उवाही जायइ। . -आचारांग १ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy