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________________ कर्म-अस्तित्व के मूलाधार : पूर्वजन्म और पुनर्जन्म-२ ७५ पश्चिम जर्मनी के एक वैज्ञानिक डॉ. लोथर विद्जल ने लिखा है कि मृत्यु से पूर्व मनुष्य की अन्तश्चेतना इतनी संवेदनशील हो जाती है कि वह तरह-तरह के चित्र-विचित्र दृश्य देखने लगता है। ये दृश्य उसकी धार्मिक आस्थाओं के अनुरूप होते हैं। अर्थात्-जिस व्यक्ति का जिस धर्म से लगाव होता है, उसे उस धर्म, मत या पंथ की मान्यतानुसार मरणोत्तर जीवन में या मृत्यु से पूर्व वैसी ही आकृति एवं ज्योतिर्मय प्रकाश दिखाई देता है। उदाहरणार्थ-हिन्दुओं को यमदूत या देवदूत दिखाई देते हैं। मुसलमानों को अपने धर्मशास्त्रों में उल्लिखित प्रकार की झांकियाँ दीख पड़ती हैं। ईसाइयों को भी उसी प्रकार बाइबिल में वर्णित पवित्र आत्माओं या दिव्यलोकों के दर्शन या अनुभव होते हैं।' 'पाश्चात्य देशों के कई लोग, जिन्हें व्यक्तिगत रूप से किसी धर्म या मत विशेष के प्रति आकर्षण या लगाव नहीं था, ऐसे अनुभवों से गुजरे, मानो एक दिव्य-ज्योतिर्मय आकृति उनके समक्ष प्रकट हुई हो।' पाश्चात्य दार्शनिक गेटे, फिश, शोलिंग, लेसिंग आदि ने अपने ग्रन्थों में पुनर्जन्म का प्रतिपादन किया है। __. 'प्लेटो' ने अपनी एक पुस्तक में लिखा है-"जीवात्माओं की संख्या निश्चित है, (उनमें घट-बढ़ नहीं होती) (मृत्यु के बाद नये) जन्म के समय (किसी नये) जीवात्मा का सृजन नहीं होता, वरन् एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रत्यावर्तन होता रहता है।" 'लिवनीज' ने अपनी पुस्तक "दी आयडियल फिलॉसॉफी ऑफ लिबर्टीज" में लिखा है-"मेरा विश्वास है कि मनुष्य इस जीवन से पहले भी रहा है।" प्रसिद्ध विचारक 'लेस्सिंग' अपनी प्रख्यात पुस्तक 'दी डिवाइन एज्युकेशन ऑफ दि ह्युमन रेस' में लिखते हैं-"विकास का उच्चतम लक्ष्य एक ही जीवन में पूरा नहीं हो जाता, वरन् कई जन्मों के क्रम में पूर्ण होता है। मनुष्य ने कई बार इस पृथ्वी पर जन्म लिया है और अनेकों बार लेगा।"२ ईसामसीह ने एक बार अपने शिष्यों से कहा था-"मैं जीवन हूँ, और पुनर्जीवन भी। जो मेरा विश्वास करता है, सदा जीवित रहेगा; भले ही वह शरीर से मर चुका ही क्यों न हो।" यह कथन पुनर्जन्म के अस्तित्व को ध्वनित करता है। 'बाइबिल' की एक कथा में भी जीवन की शाश्वतता को १. अखण्ड ज्योति, जून १९७९ के लेख से संक्षिप्त सार, पृ. १२ २. वही, सितम्बर १९७९, के 'गतिशील जीवन प्रवाह' लेख से सारांश उद्धृत, पृ. १९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004242
Book TitleKarm Vignan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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