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________________ ५८ कर्म-विज्ञान : कर्म का अस्तित्व (१) आप्त का लक्षण भी यही है-जो वीतराग हो, १८ दोषों से रहित हो, सर्वज्ञ हो, सर्वहितैषी हो।' सर्वज्ञ वीतराग प्रभुवचनों से पूर्वजन्म-पुनर्जन्म और कर्म का अविनाभावी सम्बन्ध इसके अतिरिक्त आचारांग, उत्तराध्ययन, विपाकसूत्र, निरयावलिकादि शास्त्रों में भी प्रत्यक्षज्ञानी आप्त पुरुषों ने सर्वत्र यही प्रतिध्वनित किया है, कि जो आत्मवादी होता है, वह लोकवादी अवश्य होता है। अर्थात्-वह इहलोक-परलोक, या स्वर्ग-नरक-मनुष्यलोक-तिर्यञ्च लोक को अवश्य मानता है। दूसरे शब्दों में वह पूर्वजन्म-पुनर्जन्म को अंसदिग्ध रूप से मानता है। और जो लोकवाद को मानता है, उसे इहलोक में आनेजन्म लेने और मृत्यु के बाद विविध परलोकों में जाने के मुख्य कारण'कर्मवाद' को अवश्य ही मानना पड़ता है। ____क्योंकि कर्मों के कारण ही कार्मण शरीरयुक्त आत्मा का इहलोकपरलोक में आवागमन होता है। इस प्रकार प्रत्यक्षज्ञानियों के वचनों से पूर्वजन्म-पुनर्जन्म का अस्तित्व सिद्ध होने से 'कर्म' का अस्तित्व भी निःसन्देहरूप से सिद्ध हो जाता है। प्रत्यक्षज्ञानियों द्वारा कर्म के साथ अतीत-अनागत जीवन का निर्देश जो इतना समझाने पर भी प्रत्यक्षज्ञानियों के कथन पर विश्वास नहीं करते, उन भ्रान्त लोगों को फिर चौबीसवें तीर्थकर वीतराग सर्वज्ञ महावीर स्वामी ने पूर्वजन्म और पुनर्जन्म के अस्तित्व के साथ कर्म के अविच्छिन्न प्रवाह को फिर से समझाते हुए कहा है- . ___"कई जीव (आत्मा) इस जीवन से पूर्व का और इस जीवन के आगे (दूसरे जीवन) का स्मरण-चिन्तन ही नहीं करते कि इस जीव का अतीत क्या था और इसका भविष्य क्या है ?" __ "इसको लेकर कितने ही मानव यों कह देते हैं कि इस संसार में इस जीव का जो अतीत था, वही (वैसा ही) भविष्य होगा। किन्तु तथागत १. आप्तेनोच्छिन्नदोषेण सर्वज्ञेनागमेशिना । भवितव्यं नियोगेन, नाऽन्यथा ह्याप्तता भवेत् ॥५॥ क्षुत्पिपासाजराऽऽतंक-जन्मातंक-भय-स्मयाः । न राग-द्वेषमोहाश्च यस्याप्तः स प्रकीर्त्यते ॥६॥ -रत्नकरण्डश्रावकाचार श्लो. ५-६ २. 'से आयावादी लोयावादी कम्मावादी किरियावादी । -आचारांगसूत्र श्रु. १, अ. १, उ. १, सू. ५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004242
Book TitleKarm Vignan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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