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________________ कर्म - अस्तित्व के मूलाधार पूर्वजन्म और पुनर्जन्म - १ ५३ 'संसार में कई लोगों को यह संज्ञा (सम्यक्ज्ञान) नहीं होती कि "मैं पूर्व दिशा से आया हूँ, दक्षिण दिशा से आया हूँ, पश्चिम दिशा से आया हूँ, उत्तर दिशा से आया हूँ, ऊर्ध्व दिशा से आया हूँ, अधोदिशा से आया हूँ अथवा अन्य किसी दिशा या अनुदिशा से मैं आया हूँ। " "इसी प्रकार कई लोगों को यह ज्ञात नहीं होता कि मेरी आत्मा औपपातिक (पुनर्जन्म करने वाली है, अथवा पूर्वजन्म से आई) है, अथवा ऐसी नहीं है, मैं कौन था ? अथवा मैं यहाँ से च्यवकर (आयुष्य समाप्त होते ही मर कर) आगामी लोक (परलोक) में क्या होऊँगा ?" " प्रत्यक्षज्ञानियों द्वारा कथित पूर्वजन्म- पुनर्जन्म वृत्तान्त प्रत्यक्षज्ञानी तीर्थंकरों तथा उनके गणधरों, विशेषतः श्री गौतम स्वामी, सुधर्मास्वामी आदि ने, एवं पश्चाद्वर्ती ज्ञानी आचार्यों एवं मुनिवरों ने अनेक शास्त्रों एवं ग्रन्थों में पूर्वजन्म और पुनर्जन्म के अस्तित्व को सिद्ध करने वाले घटनाचक्रों का यत्र-तत्र उल्लेख किया है। जैन कथाओं, महाकाव्यों, नाटकों; एवं स्तोत्रों आदि में भी यत्र-तत्र सर्वत्र पूर्वजन्म और पुनर्जन्म के सम्बन्ध में अनेक संवाद और वृतान्त मिलते हैं। भगवान महावीर के पूर्वभवों का उल्लेख सर्वप्रथम हमें आवश्यक - नियुक्ति, विशेषावश्यक भाष्य, आवश्यकचूर्णि आवश्यक हरिभद्रीय वृत्ति, आवश्यक मलयगिरि वृत्ति, चउप्पन्न महापुरिस चरियं में मिलता है। कल्पसूत्र (आचार्य भद्रबाहुस्वामी रचित) की टीकाओं में वर्णित भगवान् महावीर स्वामी के तीर्थंकर भव से पूर्व के २७ भवों (जन्मों) का वर्णन पूर्वजन्म और पुनर्जन्म की मुँहबोलती कहानी है। " इसी प्रकार भगवान् पार्श्वनाथ के दस भवों का वर्णन भी कल्पसूत्र टीका त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र आदि शास्त्रों एवं ग्रन्थों में मिलता है। इसमें भ. पार्श्वनाथ के साथ कई जन्मों तक जन्म-मरण के रूप में कमठ की १. इहमेगेसिं णो सण्णा भवइ, तंजहा - पुरत्यिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, दाहिणाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, पच्चत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमसि, उत्तराओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उड्ढाओ वा दिसाओ आराओ अहमंसि, अहो दिसाओ वा आगओ अहमंसि, अण्णयरीओ दिसाओ अणुदिसाओ वा आगओ अहमंसि ।" - " एवमेगेसि णो णायं भवइ - अत्थि मे आया उववाइए णत्थि मे आया उववाइए, के अहं आसी ? केवाइओ चुए इह पेच्चा भविस्सामि । " - आचारांग सूत्र श्रु. १, अ. १, उ. १, सू. १-२. २. कल्प सूत्र (भगवान महावीर का पंच कल्याणक वर्णन ) (सं. उपाचार्य देवेन्द्रमुनि) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004242
Book TitleKarm Vignan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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