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________________ ३८ कर्म-विज्ञान : कर्म का अस्तित्व (१) सकेगा । जब जीव में शुद्ध होने की विद्यमान शक्ति को व्रत, तपस्या आदि का निमित्त मिलता है, तब वह शुद्ध हो जाता है। अतः यही मानना युक्तिसंगत होगा कि संसारी आत्मा कथंचित् शुद्ध है, और कथंचित् अशुद्ध है । ' संसार तथा संसारी (अशुद्ध) दशा का मुख्य कारण : कर्म शुद्ध या अशुद्ध, जितनी भी अवस्थाएँ हैं, वे धर्म, अधर्म, आकाश, काल एवं पुद्गल आदि षट्द्रव्यों में से जीव तथा पुद्गल द्रव्य में ही पाई जाती हैं। अन्य द्रव्यों में नहीं। इसी प्रकार जीवों में शुद्धदशा और अशुद्धदशा का जो अन्तर किया जाता है, वह कर्मरूप निमित्त की अपेक्षा से किया जाता है। दर्शनशास्त्रों में दो प्रकार के निमित्त माने गए हैं। एक साधारण: निमित्त यानी तटस्थ निमित्त होते हैं। जैसे- जीवों की गति - आगति में सहायक धर्म-अधर्म द्रव्य तटस्थ निमित्त हैं। आकाशद्रव्य उसे अवकाश देने में तटस्थ सहायक है, तथा कालद्रव्य समय आदि के ज्ञान या वस्तुओं के परिवर्तन को समझने में तटस्थ निमित्त बनता है। दूसरे सहकारी निमित्त होते हैं, जो किसी कार्य में प्रत्यक्ष सहकारी बनते हैं। जैसे -घड़े की उत्पत्ति .. में कुम्भकार और कपड़े की उत्पत्ति में बुनकर (जुलाहा ) प्रत्यक्ष सहकारी निमित्त हैं। प्रश्न होता है, जीव की इस अशुद्धदशा या संसारदशा अथवा बद्धदशा (अवस्था) का मुख्य कारण - असाधारण निमित्त कौन-सा है ? कौन सा ऐसा कारण या तत्त्व है, जिसके कारण जीव को नाना गतियों और योनियों में जन्म-मरणादि के चक्र में परिभ्रमण करना पड़ता है, नाना शरीरादि धारण करने पड़ते हैं, विभिन्न सुखदुःखादिरूप फल भोगने पड़ते हैं ? भगवान महावीर ने कहा- जीव की इस संसार दशा का या संसार का मुख्य कारण-कर्म है । १ (क) स वीयरागो कयसव्वकिच्चो, खवेइ नाणावरणं खणेणं । तहेव जं दंसणमावरेइ, जं चन्तरायं पकरेइ कम्मं ॥ सव्वं तओ जाणइ पासइ य अमोहणे होइ निरंतराए । अणासवे झाणसमाहिपत्ते आउक्खए मोक्खमुवेइ सुद्धे ॥ (ख) पंचास्तिकाय तात्पर्यवृत्ति २७ (ग) कार्तिकेयानुप्रेक्षा गा. २०० - २०१-२०२ (घ) अमितगति श्रावकाचार ४/३३ Jain Education International A -उत्तराध्ययन, अ.३२/१०८-१०९ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004242
Book TitleKarm Vignan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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