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कर्मों के दो कुल : घाति कुल और अघाति कुल
आत्मा के मूल और प्रतिजीवी गुणों के घातक कर्मों के दो कुल
जेठ की दुपहरी में मध्याह्न का सूर्य आकाश में जाज्वल्यमान है, वह पूरी शक्ति से ताप और प्रकाश दे रहा है । ताप और प्रकाश के अतिरिक्त भी सूर्य शक्ति, स्फूर्ति, विटामिन, ज्योति, पुरुषार्थ प्रेरणा, तेजस्विता आदि भी परोक्षरूप से प्रदान करता है । परन्तु अचानक आकाश में काले-कजरारे बादल उमड़-घुमड़-कर आ गए, तूफानी हवाएँ चलने लगीं कि सूर्य की शक्तियाँ आच्छादित हो गई, ताप और प्रकाश की उसकी शक्ति कुण्ठित हो गई। अब प्रायः उससे स्फूर्ति के बदले आलस्य, ज्योति के बदले अन्धकार, पुरुषार्थ-प्रेरणा के बद्गले अकर्मण्यता की वृत्ति, तेजस्विता के बदले नामर्दगी, शक्ति के बदले रोगादि में वृद्धि होने के कारण अशक्ति बढ़ने लगती है। सूर्य का ताप न होने से शैत्य (ठंडक ) बढ़ जाती है, प्राणी की कर्तृत्वशक्ति में क्षीणता आ जाती है। ऐसा क्यों होता है ?
प्रत्यक्षदर्शी यह कहते हैं कि बादल सूर्य पर छा गए हैं। उन्होंने सूर्य की सभी शक्तियों को आवृत और कुण्ठित कर दिया है। सूर्य के गुणों को बादलों ने आवृत कर दिया, इस कारण वह अपने गुणों को प्रकट नहीं कर पाता। यही बात आत्मा के सम्बन्ध में समझिए ।
जगदाकाश में आत्मा अनन्तज्ञान और अनन्तदर्शन से प्रकाशमान है, असीम आनन्द से स्फूर्तिमान, पुरुषार्थवान् है, अनन्तशक्ति (वीर्य) से तेजस्वी और शक्तिमान है। वह अपने आप में निरामय, ज्योतिर्मान एवं क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायिक चारित्र एवं क्षायिकदान तथा क्षायोपशमिक गुणों से सम्पन्न है। परन्तु कर्मों के मेघ उसकी अनन्त शक्तिमय गुणरश्मियों को आवृत एवं कुण्ठित कर देते हैं। कर्म आत्मा के अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तआनन्द (आत्मसुख) एवं अनन्तशक्ति (वीर्य) इन चारों मूलगुणों को • प्रकट नहीं होने देते। ये आत्मा की स्वभाव - दशा को विकृत करते हैं।
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