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५५२ कर्म-विज्ञान : कर्म का विराट् स्वरूप (३) . 'जैसे को तैसा', 'शठे शाठ्यं समाचरेत' । 'जब तक जीओ, सुख से जीओ: कर्ज करके घी पीओ२ तथा अश्वमेध, गोमेध, नरमेध आदि यज्ञ कर्म एवं अजबलि, पशुबलि, महिषबलि, नरबलि आदि बलि कर्म और कुर्बानी इत्यादि हिंसाजनककर्म करके देवी-देवों को सन्तुष्ट करो, वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति'। इन और इस प्रकार की गलत मान्यताओं और धारणाओं के चक्कर में पड़कर अपने जीवन को अनन्त जन्म-मरण की घाटियों में भटकाने का प्रयत्न करता है। वह तथाकथित कर्म के फलितार्थ एवं हानिलाभ पर जरा भी विचार किये बिना गतानुगतिक बनकर अपने जीवन-रथ को उसी पथ पर सरपट दौड़ाता रहता है। वह यह नहीं जानता-बूझता कि शब्दों के अमुक अर्थों की कुछ पुरानी परम्पराएँ मृत हो चुकी हैं और उनकी जगह नई परम्पराएँ आ बैठी हैं। भौतिकविज्ञान, मनोविज्ञान, शरीरविज्ञान, अध्यात्मदर्शन, जीवनविज्ञान, योग-दर्शन आदि सभी विज्ञान और दर्शन आज कर्म शब्द में सुषुप्त और गुप्त नये-नये अर्थों तथा उसके रहस्य की पों को उठाने में लगे हुए हैं। कर्म के सकाम और निष्काम, दोनों रूपों को जानना आवश्यक
अतः कर्म शब्द के सकाम और निष्काम, दोषपूर्ण और निर्दोष दोनों रूपों को जानना अत्यावश्यक है। जो कर्म मनुष्य-जीवन में एडी से लेकर चोटी तक व्याप्त है, उसे साफ-सुथरा, शुद्ध और निर्दोष कैसे बनाया जाए? इस यक्ष-प्रश्न पर विचार करना अनिवार्य है और यह तथ्य कर्म शब्द के सकाम और निष्काम दोनों रूपों को भलीभांति जाने-बूझे बिना नहीं हो सकता। सकाम और निष्काम शब्द के अर्थों में विपर्यास
यों तो सकाम और निष्काम, ये दोनों शब्द काम शब्द से निष्पन्न एवं १ खून का बदला खून से लो, जैसे को तैसा 'it for tat' इस प्रकार का कर्म सिद्धान्त
_ 'मूसा' का था। २ 'यावज्जीवेत् सुखं जीवेत्, ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्' ।-यह क्रियात्मक रूप चार्वाक ... दर्शन का था। ३. (क) वेदों, ब्राह्मणों और पुराणों में इस प्रकार के क्रियाकर्मों तथा काम्यकर्मों का
वर्णन मिलता है। (ख) यज्ञों में पशुबलि का वर्णन मीमांसादर्शन द्वारा कर्म के रूप में प्रतिपादित है। (ग) उसी का विकृत रूप शाक्त सम्प्रदाय के तंत्र ग्रन्थों में है।
(घ) इस्लाम धर्म में भी हिंसक कर्म प्रचलित है। ४. गीता के अ. २ श्लो. ४१-४२-४३ में सकामी पुरुषों की कर्मसम्बन्धी विविध
भ्रान्तियों तथा कर्मफलाकांक्षा, फलासक्ति तथा भोग और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए अनेक क्रियाओं वाली सकाम एवं आकर्षक वाणी का वर्णन है।
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