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________________ ४३० कर्म-विज्ञान : कर्म का विराट् स्वरूप (३) करने या न करने, सत्य बोलने या असत्य बोलने, यहाँ तक कि आत्महत्या करने, न करने में भी वह पूर्ण स्वतंत्र है। कर्म करने की जितनी स्वतंत्रता : उतनी ही जिम्मेवारी में परतंत्रता ___कर्म-स्वातंत्र्य का फलितार्थ यह है कि कर्मकर्ता दुर्जनता या सज्जनता के चाहे जैसे कर्म करने में स्वतंत्र है, परन्तु उसका फल भोगने में वह उतना ही परतंत्र है। उसे कर्म करने के बाद उसका मनचाहा फल भोगने या न भोगने की स्वतंत्रता नहीं है। मनुष्य कर्म करने में तो स्वतंत्र हो, किन्तु उसका परिणाम भोगने की जिम्मेवारी से मुक्त हो जाए, ऐसी द्विमुखी स्वतंत्रता नहीं है। इसलिए कर्मकर्ता की जितनी स्वतंत्रता कर्म करने की है, उतनी ही जिम्मेवारी उस कर्म के परिणाम भोगने की उसकी होगी। कहावत है Freedom implies responsibility. जितनी स्वतंत्रता, उतनी ही जिम्मेवारी; इसका यथार्थ भान कर्मकर्ता को रखना आवश्यक है। कुछ भी करने के बाद फिर मनुष्य चाहे कि उसका फल न भोगना पड़े, यह असम्भव है। यह पूर्ण स्वतंत्रता नहीं, उसका मजाक है। . पूर्ण-स्वतंत्रता का इतना ही या ऐसा अर्थ नहीं है कि अच्छे कर्म करने की स्वतंत्रता तो हो, बुरे कर्म करने की नहीं। ऐसी स्वतंत्रता पूर्ण नहीं कहलाती। यह तो वैसी ही स्वतंत्रता हुई, जैसे-कोई अपनी पत्नी को घर की पूर्ण स्वतंत्रता देकर कहे कि "मैंने उसे सारी तिजोरी सौंप दी है, परन्तु उसकी चाबियाँ अपने पास रखी हैं।" ऐसी स्वतंत्रता पूर्ण स्वतंत्रता नहीं कहलाकर स्वतंत्रता की मजाक कहलाती है।' अमेरिका में 'हेनरी फोर्ड' ने जब सर्वप्रथम मोटरें बनाई तो उसने सभी मोटरें केवल एक ही रंग-काले रंग की बनाई और उन्हें सेल-डिपो में कतारबंध खड़ी करके ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए सेल-डिपो पर एक बोर्ड लगाया 'You can choose any colour you like, provided itis black.' "तुम चाहे जो रंग (रंग की मोटर) पसंद कर सकते हो, बशर्ते कि वह काला हो।" इसमें स्वतंत्रता तो पूरी दी गई, परन्तु उसके साथ काला रंग होने की शर्त लगा दी; यह स्वतंत्रता नहीं, निज-तंत्रता (अपनी इच्छा के अधीन करने की चातुरी) थी। १. कर्मनो सिद्धान्त (हीराभाई ठक्कर) से पृ. ७४-७५ २. वही, पृ.७५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004242
Book TitleKarm Vignan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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