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________________ ३१० कर्म - विज्ञान : कर्मवाद का ऐतिहासिक पर्यालोचन (२) होता ही है; जो नहीं होना है, वह उसका, उस समय, वहाँ नहीं होगा।' सूत्रकृतांगसूत्र की टीका में इस आशय का एक श्लोक भी उद्धृत है, जिसका भावार्थ है—' "मनुष्यों को नियति के प्रबल आश्रय से जो भी शुभ या अशुभ प्राप्त होना है, वह अवश्य ही होगा। प्राणी कितना भी प्रयत्न कर ले, परन्तु जो नहीं होना है, वह नहीं ही होगा। जो भवितव्य है, अर्थात् — होना है, उसे कोई मिटा नहीं सकता।" लोकतत्त्व' में इसी आशय की व्याख्या मिलती है। श्वेताश्वतर 'उपनिषद्' के सिवाय अन्य उपनिषदों में इस वाद का विशेष विवरण नहीं. मिलता । नन्दीसूत्र की टीका में एक श्लोक इस सम्बन्ध में उद्धृत है, जिसका आशय यह है कि समस्त जीवों के सभी भाव नियत रूप से स्थित हैं। इसलिए उसके स्वरूपानुसार अपनी गति से सभी कार्य नियतिजन्य होते हैं। गोम्मटसार' एवं शास्त्रवार्तासमुच्चय' में नियतिवाद की व्याख्या करते हुए कहा गया है - जो बात जिस समय, जिस रूप में होनी होती है, वह उसी रूप में, उसी समय, उसी कारण से, उसी रूप में नियत (निश्चित) ही होती है। कौन इसे रोकने में समर्थ है ? अतः भवितव्यता, होनहार या अवश्यम्भाविता को प्रत्येक घटना या स्थिति का कारण मानना नियतिवाद का सर्वमान्य प्रचलित प्रथम अर्थ है। नियतिवाद के इस अर्थ के अनुसार जो होना होता है, वह अवश्य होता है, उसमें मनुष्य की धारणा, योजना या कर्तृत्वक्षमता की गणना काम नहीं आती, न ही उसमें काल, स्वभाव या पुरुषार्थ को कोई अवकाश है। वैसा होने का काल पक गया हो, और उसका स्वभाव भी वैसा होने का हो, किन्तु भवितव्यता (नियति) न हो तो वैसा नहीं होता। जगत् में प्रत्येक बनाव या बनाने का आधार होनहार पर ही है। एक दृष्टि से यह अकस्मात् है, परन्तु वह नियत है, इसी तरह से होता है, दूसरी तरह से नहीं। इसमें १. प्राप्तव्यो नियतिबलाश्रयेण योऽर्थः सोऽवश्यं भवति नृणां शुभोऽशुभो वा । भूतानां महति कृतेऽपि प्रयत्नेनाभाव्यं भवति न भविनोऽस्ति नाशः ॥ - सूत्रकृतांग टीका १/१/२ २. लोकतत्त्व अ. २९ ३. श्वेताश्वतर उपनिषद १/२ ४. नियतेनैव रूपेण सर्वे भावा भवन्ति यत् । ततो नियतिजा ह्येते तत्स्वरूपानुवेधतः ॥ ५. जत्तु जदा जेण जहा जस्स य णियमेण होति तत्तु तदा । तेण तहा तस्स हवे इदि वादो णियदिवादो हु || ६. यद् यदैव यतो यावत्, तत् तदेव ततस्तथा । नियतं जायते न्यायात् क एनां बाधितुं क्षमः ॥ Jain Education International - नन्दीसूत्र टीका - गोम्मटसार (कर्मकाण्ड) ८८२ - शास्त्रवार्ता- समुच्चय २/१७४ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004242
Book TitleKarm Vignan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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