________________
२८४ . कर्म-विज्ञान : कर्मवाद का ऐतिहासिक पर्यालोचन (२) वृद्धि हुई है। कई विश्वविद्यालयों, धार्मिक परीक्षा बोर्डों एवं धार्मिक पाठशालाओं में कर्मशास्त्र को पाठ्यक्रम में स्थान दिया गया है। कर्मसिद्धान्त पर रिसर्च करने वाले भी कई शोधस्नातक तैयार हो रहे हैं। कई स्थानों पर दर्शनान्तरीय कर्मविवेचन के साथ जैनकर्म सिद्धान्त का तुलनात्मक अध्ययन एवं अनुसन्धान भी हो रहा है। यह कार्य कर्मवाद के. विकास में चार चांद लगाने वाला सिद्ध हो रहा है। विकास के सर्वोच्च शिखर पर कर्मवाद : कब और कैसे ?
इस प्रकार कर्म-विषयक साहित्य का सृजन उत्तरोत्तर कर्मवाद के समुत्थान से लेकर विकास के सोपानों पर चढ़ता रहा है। और इस प्रगतिशील वैज्ञानिक युग में तो हिन्दी, अंग्रेजी एवं प्रादेशिक गुजराती, बंगला, मराठी, कन्नड़ आदि भाषाओं में कर्मविज्ञान का विवेचन मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, शिक्षाविज्ञान, जीवविज्ञान, शरीरविज्ञानशास्त्र, तथा भौतिक विज्ञान आदि के परिप्रेक्ष्य में तुलनात्मक अध्ययन, मनन, परिशीलन एवं साहित्य-सृजन हो रहा है। इसलिए वह दिन दूर नहीं, जब कर्मविज्ञान आध्यात्मिक पृष्ठभूमि पर विश्व के समस्त विज्ञानों के साथ अनेकान्तदृष्टि से परस्पर सामञ्ज्य स्थापित करता हुआ विकास के सर्वोच्च शिखर को छू लेगा।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org