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कर्मवाद का तिरोभाव-आविर्भाव : क्यों और कब २६३
४. व्यक्त भारद्वाज-पृथ्वी आदि पंचभूतों के विषय में शंका;
(शून्यवाद) ५. सुधर्मा अग्निवेश्यायन-इहलोक-परलोक, सादृश्य-वैसादृश्य का
संशय। ६. मण्डिक वशिष्ठ-बन्ध और मोक्ष के विषय में संशय। ७. मौर्यपुत्र काश्यप-स्वर्गलोकवासी देव हैं या नहीं? ८. अकम्पित गौतम-नारक हैं या नहीं? इस विषय में सन्देह। ९. अचलभ्राता हारित-पुण्य और पाप हैं या नहीं? १०. मैतार्य कौण्डिन्य-परलोक है या नहीं? ११. प्रभास कौण्डिन्य-निर्वाण (मोक्ष) है या नहीं ?
ग्यारह भावी गणधरों की शंकाएँ और उनका समाधान पढ़ने से यह स्पष्ट प्रतीत हो जाता है कि भगवान् महावीर ने उनकी शंकाओं के समाधान में कर्मवाद के अस्तित्व को विविध पहलुओं से अभिव्यक्तआविर्भूत किया है। .. प्रथम भावी गणधर इन्द्रभूति ने जीव (आत्मा) के अस्तित्व के विषय में शंका की है। उसका समाधान भी विभिन्न युक्तियों और प्रमाणों से सिद्ध किया है। संसारी जीवों (आत्माओं) के साथ कर्म का प्रवाहरूप से अनादिकाल से सम्बन्ध है। इसलिए आत्मा का अस्तित्व मानने पर कर्मवाद का अस्तित्व मानना ही पड़ता है। . दूसरे भावी गणधर अग्निभूति ने तो कर्म के अस्तित्व के विषय में ही शंका उठाई है। उसके समाधान के प्रसंग में भ. महावीर ने कर्म का अस्तित्व सिद्ध किया है। साथ ही कर्म मूर्त, परिणामी, विचित्र, अनादिकालसम्बद्ध और अदृष्ट है, इत्यादि कर्मवाद सम्बन्धी रहस्यों का भी उद्घाटन किया है। . ... तीसरे भावी गणधर का आत्मा (जीव) और शरीर की भिन्नताअभिन्नता का प्रश्न भी आनुषंगिक रूप से कर्मवाद से सम्बद्ध है। कर्म के फलस्वरूप जीव को विभिन्न गतियों योनियों में विभिन्न शरीर प्राप्त होते हैं, जबकि आत्मा (जीव) तो वही रहता है।
चौथे भावी गणधर के साथ पंचभूतों के विषय में चर्चा हुई है। बहुधा : शून्यवादी ही पंचभूतों के अस्तित्व से इन्कार करते हैं। जैन दृष्टि से कर्म
भौतिक (पौद्गलिक) हैं। अतः पंचभूतों की चर्चा के साथ आनुषंगिकरूप से कर्मवाद की चर्चा भी आ जाती है।
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