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________________ २६२ कर्म-विज्ञान : कर्मवाद का ऐतिहासिक पर्यालोचन (२) जनता को कर्मवाद का जीता-जागता रहस्य अभिव्यक्त आविर्भूत कर दिया। जो लोग कर्मवाद के सिद्धान्त को विस्मृत हो गए थे, उन्हें भी कर्म और कर्मफल के रहस्य का साक्षात्कार हो गया।' उस युग में कर्मकाण्डी मीमांसकों का जोर था। यज्ञ-यागों का बोलबाला था। जगह-जगह यज्ञों में निर्दयतापूर्वक पशुओं का वध करके उनकी बलि दी जाती थी। आम जनता भगवान् पार्श्वनाथ के द्वारा उपदिष्ट एवं अभिव्यक्त कर्मवाद के रहस्यों और तत्त्वों को लगभग भूल-सी गई थी। उस समय के ब्राह्मण पण्डितों को भी इस कर्मतत्त्व का रहस्य ज्ञात नहीं था। फलतः जाति-मद, पाण्डित्य-मद, एवं पशुवधमूलक यज्ञ-यागादि के अनुष्ठान में रत, ब्राह्मणवर्ग ही नहीं, उनके साथ-साथ क्षत्रिय वर्ग एवं आम जनसमूह भी कर्मवाद के रहस्य से अनभिज्ञ हो गया था। देववाद, यज्ञवाद एवं पुरोहितवाद का बोलबाला था। सृष्टि के मूल कारण तथा संसार में इतनी विविधता, विचित्रता एवं भिन्नता का वास्तविक कारण वे विविध देवों को ही समझते थे। बाद में प्रजापति-ब्रह्मा को ही इस विचित्र सृष्टि के सृजन-संहार का कारण मानने लगे, और विविध दुःखों का कारण अपने कर्मों को न समझकर देवों या प्रजापति के द्वारा दिये हुए समझ कर उनके निवारण के लिए स्वयं तप, त्याग, संयम, नियम के आचरण में पुरुषार्थ करके कर्मक्षय करने के बदले, वे उन देवों या प्रजापति की स्तुति, मनौती, यज्ञादि के रूप में करके सुख-सुविधा पाना चाहते थे। भगवान् महावीर ने उत्तराध्ययन, भगवती (व्याख्याप्रज्ञप्ति) आदि आगमों में विविध प्रकार से कर्मवाद का रहस्य खोला है। . गणधरों की कर्मवादसम्बन्धित शंकाओं का समाधान भगवान् महावीर के तीर्थकर बनने के पश्चात् जो ग्यारह धुरन्धर विद्वान् पण्डित उनके सम्पर्क में आए, वे वेदपाठी ब्राह्मण थे, परन्तु आत्मापरमात्मा, स्वर्ग-नरक, मोक्ष, कर्म एवं कर्मफल के विषय में उनके मन में संशय था। उन ग्यारह भावी गणधरों की क्या-क्या शंकाएँ थीं, और उनका समाधान कर्मवाद के परिप्रेक्ष्य में भगवान् महावीर ने किस प्रकार किया? इसका समस्त विवरण 'गणधरवाद' में विशदरूप में मिलता है। ग्यारह गणधरों की संक्षेप में क्रमशः ये शंकाएँ थीं १. इन्द्रभूति गौतम-जीव (आत्मा) का अस्तित्व है या नहीं? २. अग्निभूति गौतम-कर्म है या नहीं? ३. वायुभूति गौतम-जीव (आत्मा) और शरीर एक ही हैं, या भिन्न भिन्न? १. देखिये, विशेष विवरण के लिए- भगवान् महावीर : एक अनुशीलन ले. उपाचार्य देवेन्द्र मुनि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004242
Book TitleKarm Vignan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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