________________
कर्मवाद का तिरोभाव - आविर्भाव : क्यों और कब २५३
प्रागैतिहासिक काल में भ. ऋषभदेव द्वारा आविर्भूत कर्मवाद
यों तो हमने प्रत्येक कालचक्र में होने वाले तीर्थंकरों द्वारा प्रस्तुत और आविष्कृत होने के कारण कर्मवाद को प्रवाहरूप से अनादि माना है और इस अवसर्पिणी काल में प्रागैतिहासिक काल से- आदि तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव से कर्मवाद का आविर्भाव, आविष्करण या प्रारम्भिक प्रस्तुतीकरण माना है। उन्होंने कर्मवाद का आविष्करण या आविर्भाव क्यों किया ? उस समय क्या आवश्यकता थी, कर्मवाद के आविष्करण की ? इस सम्बन्ध में हम 'कर्मवाद का आविर्भाव शीर्षक निबन्ध में स्पष्ट कर चुके हैं। उस समय यौगलिक जनता का भोग भूमिका से कर्मभूमिका में संक्रमण, जनता के समक्ष जीवन-यापन का संकट, आपाधापी, अनैतिकता, अन्यायअत्याचार का दौर, छीना-झपटी, कलह, स्वार्थलिप्सा, आध्यात्मिक, नैतिक और धार्मिक तत्त्वों के प्रति अनभिज्ञता, फलतः मनमाना आचरण एवं स्वच्छन्दाचार आदि अनेक विकट संकट उपस्थित थे। संक्रमणकालिक परिस्थितियों के कारण उस युग का मानव धर्म, कर्म, कर्तव्य और दायित्व से बिल्कुल अबोध था। ऐसे समय में आदितीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव ने उस युग की जनता को नैतिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक पथ पर लाने के लिए कर्मवाद का सांगोपांग बोध दिया। उन्होंने स्वयं अनगार बनकर पूर्वबद्ध (पुराकृत) कर्मों से मुक्ति पाने तथा आत्मा और परमात्मा के बीच में दीवार बने हुए कर्मों से छुटकारा पाने का ज्वलन्त जीवित उदाहरण प्रस्तुत किया । कर्मवाद का चिन्तन-मनन- श्रवण, अध्ययन करने तथा अपने जीवन में मन-वचन-काया से होने वाली प्रत्येक क्रिया या प्रवृत्ति के बारे में चौकसी रखने, यतना एवं सावधानी रखने का निर्देश किया। उन्होंने अपना धर्मसंघ (धर्मतीर्थ) स्थापित किया। उसके माध्यम से जनता में कर्मवाद का आविर्भाव ही नहीं, प्रचार-प्रसार भी हुआ ।' यह हुआ प्रागैतिहासिक काल कर्मवाद के सर्वप्रथम आविर्भाव का कारण ।
नये नये तीर्थंकरों द्वारा अपने-अपने युग में कर्मवाद का आविर्भाव
-
इस अवसर्पिणीकाल में कालक्रम से चौबीस तीर्थंकर हो चुके हैं। एक तीर्थंकर के पश्चात दूसरे तीर्थंकर के होने में सैकड़ों, हजारों, लाखों वर्षों का अन्तराल' हो जाता है। इस अवसर्पिणी युग के आदितीर्थंकर भगवान्
१. इसके विस्तृत विवरण के लिए देखिये - त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र, कल्पसूत्र, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, आदि ग्रन्थ एवं शास्त्र ।
Jain Education International
२. एक तीर्थंकर से बाद दूसरे तीर्थंकर के आने के अन्तराल के लिए देखिये कल्पसूत्र में वर्णित चौबीस तीर्थकरों का अन्तराविषयक पाठ।
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org