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________________ विषयानुक्रम १ कर्म का अस्तित्त्व प्रथम खण्ड : १. आत्मा का अस्तित्त्व : कर्म अस्तित्त्व का परिचायक २. जहाँ कर्म, वहाँ संसार ३. कर्म-अस्तित्त्व के मूलाधार: पूर्वजन्म और पुनर्जन्म - १ ४. कर्म-अस्तित्त्व के मूलाधार : पूर्वजन्म और पुनर्जन्म - २ ५. परामनोवैज्ञानिकों की दृष्टि में पुनर्जन्म और कर्म ६. प्रेतात्माओं का साक्षात् और सम्पर्क: पुनर्जन्म का साक्षी ७. कर्म - अस्तित्त्व का मुख्य कारण : जगत्वैचित्र्य ८. विलक्षणताओं का मूल कारण : कर्मबन्ध ९. कर्म का अस्तित्त्व विभिन्न प्रमाणों से सिद्ध १०. कर्म का अस्तित्त्व कब से और कब तक ? ११. कर्म - अस्तित्त्व के प्रति अनास्था अनुचित द्वितीय खण्ड १. अध्यात्म शक्तियों के विकास का उत्प्रेरक : कर्मवाद २. विभिन्न कर्मवादियों की समीक्षा : ३. कर्मवाद का आविर्भाव Jain Education International चार पुरुषार्थों के सन्दर्भ में २ कर्मवाद का ऐतिहासिक पर्यालोचन · पृष्ठ १ से २०६ (17) For Personal & Private Use Only ३ ३५ ४९ ६१ ९० १०१ ११६ १३९ १५८ १६७ १८३ पृष्ठ २०७ से ३५२ २०९ २१४ २३३ www.jainelibrary.org
SR No.004242
Book TitleKarm Vignan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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