________________
कर्म अस्तित्व का मुख्य कारण: जगत्वैचित्र्य १२९
(१) व्यक्तिगत जीवन में कोई व्यक्ति अपने आप में सरल है, कोई कुटिल है, कोई उदार है तो कोई अनुदार है, कोई लोभी है तो किसी में लोभ अत्यन्त मन्द है, कोई तीव्र क्रोधी है तो कोई मन्द - क्रोधी है। किसी में तीव्र अहंकार है तो किसी में अहंकार की मात्रा अत्यन्त कम है। कोई छल-कपट करने में प्रवीण है, तो कोई छल-कपट से दूर रहता है। वैयक्तिक जीवन की इन विभिन्न अवस्थाओं का मूल कारण कर्म के वैविध्य के अतिरिक्त और कोई नहीं हो सकता।
व्यक्तिगत भिन्नता का मूल आधार : कर्म या आनुवंशिक संस्कार ?
कर्मविज्ञान, मनोविज्ञान और शरीरशास्त्र का तुलनात्मक विश्लेषण करते हुए श्री रतनलाल जैन ने अपने लेख में लिखा है - "वैयक्तिक भिन्नता भी प्रत्यक्ष देखी जा सकती है । कुछ व्यक्ति गोरे होते हैं, कुछ काले, कुछ बौने होते हैं, कुछ लम्बे । कतिपय व्यक्ति बेडौल होते हैं, कुछ सुडौल । कई प्रखर बुद्धि के धनी होते हैं, कोई मन्दबुद्धि । स्मरणशक्ति और अध्ययन (अधिगम) शक्ति या ग्रहणशक्ति भी सबकी समान नहीं होती । सबका स्वभाव भी एक-सा नहीं होता । कुछ अतिक्रोधी होते हैं तो कई शान्तप्रकृति के होते हैं । कुछ लोग प्रसन्न रहते हैं, कुछ सदा मायूस-उदास रहते हैं। ‘कई लोग निःस्वार्थ वृत्ति के होते हैं, तो कई तुच्छ स्वार्थपरायण।'
निष्कर्ष यह है कि कर्मशास्त्र में इस प्रकार की वैयक्तिक भिन्नता और विचित्रता का मूल कारण कर्म को ही माना गया है, आनुवंशिक संस्कारों को नहीं ।
(२) पारिवारिक जीवन में भी अनेक विभिन्नताएँ हम प्रत्यक्ष देखते हैं। कई लोगों को अतीव सुसंस्कारी, धार्मिक, कुलीन, उदार या मानवतापरायण तथा नैतिक नियमों का पालक परिवार मिलता है, तो किसी को मिलता है–कुसंस्कारी, पापाचार-परायण, धर्म-कर्म से दूर, अनुदार, मानवता-विहीन, नीति-धर्म के नियमों की उपेक्षा करने वाला तथा कुलपरम्परा को ताक में रख देने वाला परिवार। कई व्यक्तियों को सुसंस्कारों की कमी के कारण, धर्म - कार्यों के प्रति उदासीन, किन्तु पापकर्मों से दूर, सिर्फ नीति-नियम-परायण परिवार मिलता है। आनुवंशिक या पैतृक संस्कार पारिवारिक विभिन्नताओं के मूल कारण नहीं हो सकते । "उत्तराध्ययन सूत्र" में बताया गया है कि "जीव पूर्वकृत पुण्यकर्मों के १ देखिये श्रमणोपासक के १०/८/८९ के अंक में श्री रतनलाल जैन का 'कर्म की विचित्रता : मनोविज्ञान के सन्दर्भ में लेख ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org