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________________ ११४ कर्म-विज्ञान : कर्म का अस्तित्व (१) उसने अदालत की मेज पर तीन बार जोर-जोर से थपकी दी। इस पर न्यायाधीश ने उक्त महिला के नये पति 'डेवीज' को अपराधी घोषित कर उचित दण्ड दिया। प्रेतात्मा अधिकारी व्यक्ति के माध्यम से ही अभिव्यक्त होती है . महारानी विक्टोरिया आर. डी. लीज और जार्ज ब्राऊन की सहायता से अपने मृत पति प्रिन्स एलबर्ट की आत्मा से परामर्श और सहयोग लेती थी। क्योंकि अधिकांश प्रेतात्मा अधिकारी व्यक्ति के माध्यम से ही अभिव्यक्त होती है। यदि उचित माध्यम से सम्पर्क स्थापित किया जा सके तो मरणोपरान्त भी कई प्रेतात्माएँ उचित परामर्श, सहयोग और सान्निध्या देने में आनाकानी नहीं करती। ... स्काटलैण्ड के राजा 'जेम्स चतुर्थ' को, उन्हीं का एक पूर्वज, जो प्रेतयोनि (व्यन्तर देवयोनि) में था, बार-बार दर्शन देता था। इंग्लैंड पर आक्रमण करते समय जेम्स चतुर्थ को उस प्रेत ने रक्तपात न करने की चेतावनी दी थी, मगर जेम्स ने उसे सुनी-अनसुनी कर दी। एक बार वह पुनः जब युद्ध के लिए चला तो उक्त प्रेत ने मना करते हुए कहा- "इस युद्ध से तुम जीवित न रह सकोगे।" परन्तु जेम्स माना नहीं, वह इस युद्ध में मारा गया। प्लेंचेट के माध्यम से प्रेतात्माओं का आह्वान . इसी प्रकार वर्तमान युग में मृतात्माओं का आह्वान करने की प्लेंचेट पद्धति भी पूर्वजन्म और पुनर्जन्म को सिद्ध करती है। प्लेंचेट के माध्यम से मृतात्माओं का आह्वान किया जाता है, उनके साथ सम्पर्क साधा जाता है और कुछ प्रश्न भी पूछे जाते हैं। उनके उत्तर इतने सही और प्रामाणिक निकलते हैं कि उनकी यथार्थता, पूर्वजन्म की सत्यता और आत्मा की सत्ता से इन्कार नहीं किया जा सकता। फोटो द्वारा सूक्ष्म शरीर का अस्तित्व सिद्ध वर्तमान युग में सूक्ष्म शरीर के फोटो लेने के प्रयोग भी प्रारंभ हुए है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक 'किरलियान' दम्पति ने एक विशिष्ट प्रकार की फोटो. पद्धति आविष्कृत की है, उसके द्वारा वे सूक्ष्म शरीर के फोटो ले लेते हैं। इस १ अखण्ड ज्योति, नवम्बर १९७६ में प्रकाशित घटना से पृ. ३८ २ वही, नवम्बर १९७६ में प्रकाशित घटना से पृ. ३८ । ३ वही, नवम्बर ७६, में प्रकाशित घटना से पृ. ३८ ४ 'घट घट दीप जले' में प्रकाशित युवाचार्य महाप्रज्ञ के प्रवचन से पृ. ५८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004242
Book TitleKarm Vignan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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