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प्रेतात्माओं का साक्षात और सम्पर्क : पुनर्जन्म का साक्षी १०१
प्रेतात्माओं का साक्षात् और सम्पर्क :
पुनर्जन्म का साक्षी
मरणोत्तर जीवन के दो प्रत्यक्ष प्रमाण
मरणोत्तर जीवन के दो प्रमाण ऐसे हैं, जिन्हें प्रत्यक्षरूप में देखा, समझा और परखा जा सकता है-(१) पूर्वजन्म की स्मृतियाँ और (२) प्रेतजीवन का अस्तित्व। पूर्व प्रकरण में हमने पूर्वजन्म की स्मृतियों की अनेक घटनाएँ प्रस्तुत करके इसे प्रत्यक्षवत् सिद्ध करने का प्रयास किया है। इस प्रकरण में हम प्रेत-जीवन के अस्तित्व को प्रत्यक्षवत् सिद्ध करने का प्रयास करेंगे। परामनोवैज्ञानिकों द्वारा पर्याप्त अनुसन्धान .. परामनोवैज्ञानिकों ने इस विषय में भी पर्याप्त अनुसन्धान किये हैं। खास तौर से पाश्चात्य देशों में प्रेतविद्याविशारदों ने पूर्वजन्म की आसक्ति, मोह, घृणा, द्वेष आदि से बद्धकर्म-संस्कारों से अगले जन्म में प्राप्त प्रेतयोनि की स्थिति के विषय में शोध और प्रयोग के अद्भुत कार्य किये हैं। सर ऑलिवर लॉज, सर विलियम वारेट, रिचर्ड हडसन, मिसेज सिडफिक, सर आर्थर कानन, ए. पी. सिनेट आदि परामनोवैज्ञानिकों ने विभिन्न प्रेतों से स्नेहपूर्वक सम्पर्क स्थापित करके गम्भीर खोजें की हैं। ऐसा करके उन्होंने भारतीय धर्मों और दर्शनों द्वारा मान्य परलोकवाद की सत्यता को परिपुष्ट किया है। इतना ही नहीं, आत्मा तथा कर्म और कर्मफल के प्रवाहरूप से अनादि अस्तित्व को भी प्रमाणित किया है। जैन दर्शन-सम्मत प्रेतात्मा का लक्षण एवं स्वरूप
जैन दर्शन के अनुसार भूत, प्रेत, यक्ष, राक्षस आदि व्यन्तर जाति के देव माने जाते हैं। मनुष्य के रूप में रहते हुए इनका किसी स्थान-विशेष, व्यक्ति-विशेष या वस्तु-विशेष से प्रबल मोह-ममत्व, आसक्ति, मूर्छा, १ अखण्डज्योति, नवम्बर १९७६, में प्रकाशित लेख : 'दिव्य प्रेतात्मा की अदृश्य
सहायता' से पृ. ३९
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